शहीद वाल पर दी गई 4 शहीदों को श्रद्धांजलि कहा आम आदमी के शहीदों को राजनीतिज्ञों ने भुला दिया

शहीद वाल पर उपस्थित वरिष्ठ पत्रकार विरेन्द्र पाठक व सहयोगी

कवरेज इण्डिया न्यूज डेस्क इलाहाबाद।
इलाहाबाद ।आज लोगों को विश्वास नहीं होता कि 4 जनवरी 1932 को इलाहबाद के 4 नागरिकों को अंग्रेजों ने क्रूरतापूर्वक शहीद कर दिया ।यह इसलिए है  क्योंकि यह आम आदमी के बीच से आजादी के लिए शहीद हुए हैं । राजनैतिक और बड़े घरों से ना जुड़े होने के कारण इन्हें दस्तावेजों में दफन कर दिया गया है ।लेकिन चलो कुछ अच्छा करें मिशन के तहत इन चारों शहीदों को आज नमन किया गया ।उनके लिए एक रोशनी शहीदों के नाम जलाई गई तथा संकल्प लिया गया कि इन अनाम रहे शहीदों  की गौरव गाथा जन जन तक पहुंचाई जाएगी। कार्यक्रम में वक्ताओं ने शहीद वालों की परिकल्पना करने वाले वीरेंद्र पाठक द्वारा यह जानकारी सार्वजनिक किए जाने हर्ष व्यक्त किया गया कि शहीदों के सम्मान में शहीद बाल पूरे जोर-शोर से लगा।
आज
इलाहाबाद के 4 शहीदों के महान शहादत दिवस पर शहीद वॉल पर एक नमन कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें वक्ताओं ने इन शहीदों को सम्मान दिलाने और इनकी गौरवगाथा बतायां कि किस तरह आजादी के दीवानों ने अंग्रेजों के सामने से हटना मंजूर नहीं किया बल्कि इसके लिए कुर्बान हो जाना बेहतर समझा। भीषण ठंड के बाद भी लोग जुटे और उन्होंने इस बात पर हैरानी जाहिर की कि आखिर इन शहीदों के बारे में जानकारी लोगों को क्यों नहीं दी गई ..इनको महिमामंडित क्यों नहीं किया गया। वक्ताओं ने कहा कि विद्यालयों में तथा जनप्रतिनिधियों से इन शहीदों की गौरवगाथा अवगत करा कर उन्हें सम्मान दिए जाने तथा पाठ्यपुस्तक में इनके बारे में पाठ्य हो ऐसी मांग की जाएगी।
कार्यक्रम की प्रतीक रूप में संरक्षकता भारत माता ने की तथा अध्यक्षता अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद ने किया । अगुवाई प्रोफ़ेसर आर पी मिश्रा ने की । युवा वक्ता विकास जी को भारत भाग्य विधाता का प्रमाण पत्र दिया गया ।वक्ताओं में वीरेंद्र पाठक प्रमोद शुक्ला देवेंद्र सिंह नाजिम अंसारी तापस घोष संदीप तिवारी दिव्यांशु मेहता अतुल तिवारी आदि ने अपने विचार व्यक्त किया। भारत माता की जय जय कार कमलेश पटेल ने लगवाई ।शहीदों अमर रहो के नारों के साथ अंत में सभी शहीदों के समक्ष एक रोशनी जलाकर उनको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

उल्लेखनीय है कि 4 जनवरी को जो अमर शहीद हो गए उनमें सोहनलाल 30 वर्ष के थे और कपड़े सिलने का काम किया करते थे जिन्हें हम दर्जी भी कहते हैं। इसी तरह सूरज नारायण जो वृद्ध थे लेकिन उनके अंदर आजादी पाने की उमंग थी वह अपने बच्चों को आजाद भारत में सांस लेना और जीना देखना चाहते थे। आजादी पाने की ललक थी इनकी उम्र लगभग 64 वर्ष थी और यह पोस्ट ऑफिस से सेवानिवृत्त कर्मचारी थे । इसी तरह 62 वर्षीय नियामत उल्ला थे जो व्यवसायी थे लेकिन उन्होंने आजादी की जंग में सत्याग्रहियों का साथ देकर अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। जब घोड़ा इन बलिदानियों की तरफ बढ़ा तो इन्हें बचाने के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 18 वर्षीय हरनारायण आगे आये और इन्होंने भी अपना सर्वोच्च बलिदान इस धरती के लिए कर दिया।

क्या इनकी शहादत किसी से कम है ? ये आम आदमी के बीच के शहीद थे। इनके बेटे राजनीतिज्ञ नही थे ....  और  न ही ये वोट बैंक थे .... कि इन्हें याद किया जाता । लोगों को  इनकी जानकारी भी नही दी गयी। किसी ने कभी नाम भी नही लिया गया। इन्होंने बिना किसी स्वार्थ के अपना बलिदान दिया और  हमने भुला दिया। नेताओ की जीवनी पढ़ाया गया जिससे उनका परिवार महिमा मण्डित होता रहे लेकिन इनकी शहादत से दूर रखा।किसकी जिम्मेदारी थी इनका सम्मान !
 आजादी के बाद भी हमने इन्हे कभी   याद  नही किया। चौराहे और सड़क का नाम रखना दूर की बात।

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