प्रभु को पाने के लिए अर्थ योगिता जाति धर्म और सुंदरता की आवश्यकता नहीं होती है- भुसंडी ठाकुर जी महाराज


सानू सिंह चौहान कवरेज इंडिया।
शाहजहांपुर/अल्हागंज।श्रीमद् भागवत कथा के मर्मज्ञ ज्ञाता श्री भुसंडी ठाकुर जी महाराज ने कहा है कि जगत में प्रेम ही अमर है जो भगवान और भक्त के बीच की दूरियों को खत्म कर दोनों को निकट लाता है। प्रेम में समर्पण त्याग और उत्सुकता समाहित होती है। प्रभु को पाने के लिए अर्थ योगिता जाति धर्म और सुंदरता की आवश्यकता नहीं होती है।

इनको तो केवल प्रेम से ही पाया जा सकता है। श्री भुसुंडी जी ने प्रेम और प्यार की व्याख्या करते हुए कहा कि व्यक्तिगत लोभ  के लिए किया जाता है जैसे रावण की बहन सूर्नपनखा ने राम का प्यार पाने के लिए उनसे प्यार का इजहार किया था। उसकी कामनाएं स्वय के लोभ के लिए थी। जिसके परिणाम स्वरूप उसे अपने नाक कान लक्ष्मण जी से कटवानेंं पडे। जबकि भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा से और मीरा राधा ने श्री कृष्ण से प्रेम किया था। भगवान श्री कृष्ण जी ने अतः प्रेम को सार्थक करते हुये अपने गरीब मित्र सुदामा को अपने सिघासन पर बैठाया। और अपने आसू वहांकर हाथों से उनके पैरों को धोया। सुदामा की पत्नी सुशीला के द्वारा दी गई चावल की पोटली से दो मुट्ठी चावल खाकर उनको दो लोकों का स्वामी बना दिया। इस पर भी उन्हें संतुष्टि नहीं हुई तो विश्वकर्मा जी से सुदामा जी के लिए विशाल  स्वर्ण महल बनवा दिया।  इसलिए कहा जाता है कि प्रभु की कृपा भयो सब काजू जन्म हमार सुफल भा आजू।

इसके पूर्व जूनियर भुसंडी ठाकुर जी महाराज ने भगवान श्री कृष्ण जी की बाल लीलाओं का वर्णन बड़े प्रेमानंद के साथ किया। श्रीमद् भागवत कथा के दौरान संगीत में भजनों का श्रवण बड़ी शांति और आनंद के साथ किया।

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