आज तक आपने दीपावली पर अनेको कार्य अनेको ढंग से करके दीपावली का त्यौहार मनाया है,नव संवत्सर का प्रारम्भ इसी दिन के बाद से मनाते है,साथ ही घरो में दिप जलाने की प्रथा है,यह परम्परानुसार राम के विजयोपरांत वापस अयोध्या में आने की ख़ुशी को व्यक्त करता है।
जब सामान्य मानव के मन को हम राम मानेंगे और वन गमन को मन का विचरण करना,तो सीता रूपी देवी के स्वर्ण मृग पर लालयित होना,मन के बहकावे में आने के समान है,इसका परिणाम एक चतुर साधू वेश रावण (बुराई)के चक्रव्यूह में फसने के समान है,तब राम रूपी मानव मन इस बुराई के जाल से युद्ध करता है,जिसमे मान का ध्यान न देने वाला हनुमान (विनम्रता)सुंदर वाणी युक्त सुग्रीव,और लक्ष्य में जिसका मन हो(लक्ष्मण)जैसे सुसंकल्पो के साथ प्राकृतिक शक्तियो के प्रतिविम्ब वानर सेना,सहित राम रूपी मन बुराइयो की खान मेघ नाद,बादलो जैसे नाद करने वाले ,कुम्भ कर्ण घड़े के समान कर्ण वाले अर्थात( न सुनने वाले )अहंकार रूपी रावण के ऊपर प्रहार कर,विजय प्राप्त किया ,तत्पश्चात अयोध्या(जहा युद्ध न हो ऐसा प्रदेश) अर्थात राम (मन)बुराइयो के पहाड़ रावण से लड़कर युद्ध विहीन क्षेत्र अयोध्या(यानी जो शांत प्रदेश हो आत्म परमात्म प्रदेश)पहुँचे।
जहा पर उस आत्म परमात्म के दिव्य मिलन का महोत्सव हुआ जिसे दिव्य भाषा में दीपावली कहते है।
यह पर्व नए विहान का नए उत्सव का आत्म ज्योति प्रगटन का,अन्तर्त्मस के नस्ट करने का,रावण रूपी अहंकार को ज्ञान रूपी उजाले में नस्ट कर देने का है।भविष्य के अंजान संकट से प्राप्त भय अवसाद को निर्भयता व् आनन्द में विलय करने का है।
इसमें तीन शक्ति(लक्ष्मी-धन की शक्ति काली -तन की शक्ति और सरस्वती-मन की शक्ति)को जागृत करने का कार्य होता है।
यह पर्व हर प्रश्नो के उत्तर का है,हर समस्या में स्मधानित होने का है।हर संकट से मुक्ति का व परम आनंदित होने का है।जब मानव सभी रिस्तो पर विजय प्राप्त कर लेता है तो वह वास्तव में हर पल आनंद की दीपावली ही मनाता रहता है,जैसे राम ने मनाया ।वैसे ही आप भी हर रिश्तों को जीतो और हर पल दीपावली मनाओ।आत्म में परमात्मा की ज्योति जलाओ हर क्षण दीपावली मनाओ।हर रिश्ते परमात्मा में ही व्याप्त है।और परमात्मा सभी रिस्तो में अतः जिव जड़ चेतन मानव सबसे अपने रिश्ते बनाकर आत्मा में प्रेम की ज्योति जगाकर दीपावली सार्थक करें।
वशिष्ठ जी महराज
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