कवरेज इण्डिया धर्म कर्म डेस्क।
महाभारत' में 'पांचो' 'भाइयो' की 'पत्नी' 'द्रौपति' के बारे में तो आप जानते ही 'होंगें' । 'द्रौपति' की उत्पत्ति 'राजा' 'द्रुपत' के 'हवन' 'कुण्ड' से उस 'वक्त' हुई थी जब वह अपने दुश्मन 'द्रोणाचार्य' के वध के लिए 'पुत्र' 'प्राप्ति' का 'यज्ञ' कर रहें थे । 'राजा' 'द्रुपत' के उस 'यज्ञ' के 'हवन' 'कुण्ड' की अग्नि से एक 'पुत्र' 'धृष्टद्युम्'न के साथ' 'द्रौपति' भी प्रकट हुई थी । आप ये तो जानते ही होंगे की 'राजा' 'द्रुपत' ने अपने इस 'पुत्री' 'द्रौपती' के विवाह के लिए 'स्वम्बर' किया था । जिसमें 'ब्राम्हण' 'वेष' में आये 'अर्जुन' ने 'स्वम्बर' की शर्त को पूरा करके 'द्रौपती' को अपनी 'पत्नि' बना लिया था । जिस समय 'द्रौपति' का 'स्वम्बर' हुआ था । उस 'वक्त' 'पांचो' 'पाण्डव' भाई अपनी मॉं 'कुंती' के 'साथ' सभी से अपनी पहचान 'छिपाकर' 'ब्राम्हण' वेश में रहा करते थे और 'भिक्षा' 'मांंगकर' अपनी जीविका चलाते थे वो 'पांचो' 'पाण्डव' भाई जितनी भी 'भिक्षा' 'मांगकर' 'लाते' थे उसे अपनी मॉं 'कुंती' के सामने रख देते थे ।
फिर 'देवी' 'कुंती' उस 'भिक्षा' को अपने 'पुत्रो' के 'बिच' में 'बॉंट' दिया करती थी । इसी प्रकार जब 'अर्जुन' और 'भीम' 'द्रौपती' को लेकर अपने घर आये तो 'उन्होने' 'दरवाजे' पर खड़े होकर 'देवी' 'कुंती' से कहा कि देखो मां आज हम यह 'भिक्षा' लेकर आये है । 'परन्तु' घर का काम कर रहीं 'कुंती' ने उनकी तरफ 'देखे' बिना ही यह कह दिया कि 'पांचो' भाई मिलकर उसका उपभोग करों । 'कुंति' सहित 'पांचो' भाई बड़े ही 'सत्यवादी' थे । अपनी मॉं के मुंह से 'निकली' हर बात को आदेश की तरह पालन करना अपना धर्म 'समझते' थे । इस कारण अपनी मॉं के मुंह से 'निकले' इस 'शब्दो' को लेकर पांचो भाई चिंतित हो गये । 'देवी' 'कुंती' ने जब 'द्रौपती' को देखा तो वह भी बिल्कुल 'विचलीत' हो गई कि उसने यह क्या बात मुंह से निकाल दी । तब देवी 'कुंती' ने अपने पुत्र 'धर्मराज' 'युधिष्ठिर' से कहां कि कोई ऐसा रास्ता निकालो जिससे 'द्रौपती' का भी कोई 'अनर्थ' न हो और मेरे मुंह से 'निकली' बात भी झूठी न हो । जब किसी से भी इस बात का 'रास्ता' नहीं निकला ता इस बात से राजा द्रुपत भी बड़े परेशान हो गये ।
और 'उन्होने' अपनी सभा में 'बैठे' 'भगवान' श्री कृष्ण और 'महर्षि' व्यास जी से कहा कि धर्म से विपरीत किसी स्त्री के पांच पति की बात तो 'सोची' भी नहीं जा सकती है तब 'महर्षि' व्यास 'राजा' द्रुपत को बताते है कि 'द्रौपति' का उसके पूर्व जन्म में 'भगवान' 'शंकर' से ऐसा ही 'वरदान' प्राप्त हुआ था । 'भगवान' 'शिव' के उसी 'वरदान' के कारण ही यह समस्या हुई है । और 'भगवान' 'शिव' की बात अन्यथा कैसे हो सकती है । 'महर्षि' 'व्यास' के समझाने पर 'राजा' 'द्रुपद' अपनी 'बेटी' 'द्रौपती' का 5 'पांडवों' के साथ विवाह करने को 'राजी' हो गये थे । इसके बाद सबसे पहले 'द्रौपती' का विवाह 'पांडवो' के सबसे बड़े भाई 'युदिष्ठिर' के साथ हुआ और उस रात 'कक्ष' में 'द्रौपती' ने अपना 'पत्नि' 'धर्म' निभाया । फिर अगले दिन 'द्रौपति' का विवाह 'भीम' के साथ हुआ । और उस रात 'द्रौपति' ने 'भीम' के साथ अपना 'पत्नि' धर्म निभाया । फिर इसी प्रकार अर्जुन, 'नकुल' और 'सहदेव' के साथ 'द्रौपती' का विवाह हुआ । और इन 'तीनो' के साथ भी 'द्रौपती' ने अपना 'पत्नि' 'धर्म' निभाया । यहां सोचने की बात यह है कि एक पति के 'साथ' अपना 'पत्निधर्म' 'निभाने' के बाद 'द्रौपति' ने बाकी 'पतियो' के साथ अपना 'पत्निधर्म' कैसे 'निभाया' होगा ।
तो 'दोस्तो' इसके पीछे भी 'भगवान' 'शिव' का ही 'वरदान' था क्योंकि जब 'भगवान' 'शिव' ने 'द्रौपति' को 5 पति प्राप्त होने का 'वरदान' दिया था । तब वह भी जानते थे कि वो अपने 'पतियो' के साथ 'पत्निधर्म' कैसे 'निभाएगी' । इस कारण 'उन्होने' 'द्रौपति' को साथ में यह 'वरदान' भी दिया था वह प्रतिदिन 'कन्याभाव' को प्राप्त हो जाएगी । 'इसलिए' 'द्रौपती' अपने 'पांचो' ही 'पतियो' को 'कन्याभाव' में ही प्राप्त हुई थी । 'परन्तु' 'सन्तान' 'प्राप्ति' के लिए 'श्रीकृष्ण' ने यह सुझाव रखा कि प्रतिवर्ष 'द्रौपती' अपने एक ही पति के साथ समय व्यतीत करेगी । और उन 'पाण्डव' के बीच यह भी निर्धारित हुआ था कि जिस समय 'द्रौपति' किसी एक 'पाण्डव' के साथ अपने कक्ष मेें अपना समय 'बिता' रही होगी तब 'उन्के' कक्ष में कोई और 'पाण्डव' प्रवेश नहीं करेगा ।
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