विश्वविद्यालय के अतिथि ग्रह के कान्फ्रेंस हॉल में आयोजित की गयी। इलाहाबाद में और साथ ही विश्वविद्यालय में इस तरह की कार्यशाला का आयोजन पहली बार किया गया। जो बहुत ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा है। जिस पर क्रमशः अध्ययन, विचार-विमर्श और विश्लेषण करने की आवश्यकता है। इस विषय के प्रति लोगों में जागरुकता लाने के साथ इसका प्रचार प्रसार करना अत्यन्त आवश्यक है। इसी उद्देश्. से दिल्ली के राही फाउण्डेशन के रिसोर्स पर्सन ने 70 प्रतिभागियों, जिसमें विभिन्न विभागों के रिसर्च स्कॉलर, संकाय सदस्य और अन्य सदस्यों को इस विषय पर सुझाव/सलाह प्रदान करी। कार्यक्रम का संचालन आगे करते हुए केन्द्र की निर्देशिका प्रो0 स्मिता अग्रवाल ने मुख्य अतिथि एवं रिसोर्स पर्सन का परिचय दे, प्रतिभागियों के सम्मुख कार्यशाला की संक्षिप्त रुपरेखा प्रस्तुत की।
इस कार्यशाला का उदघाटन इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायधीश मिस भारती सप्रु ने किया। इन्होंने प्रतिभागियों को बाल यौन शोषण के कानूनी पहलुओं और इससे सम्बन्धित अपराधिक अधिनियमों की जानकारी प्रदान कर, व्याख्यायित किया।
राही फाउण्डेशन की स्थापना 1996 में हुई थी यह महिलाओं के उत्तरजीविता के परिवारिक व्याभिचार और बाल यौन शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने वाली यह एक अग्रणी संस्था है। राही का कार्य इस प्रकार की समस्याओं को खोजना, ऐसी घटना दुबारा न घटित हो इसके लिए सहयोग प्रदान करना है। इस कार्य की परिणति के लिए राही के हिलिंग मॉडल के अन्तर्गत परिवारिक व्यभिचार/बालयौन शोषण को बताना, उसके प्रति जागरुक करना, प्रशिक्षण देना, हस्तक्षेप करना, खोजना और क्षमता का निर्माण करना, ये सभी सामाजिक परिवर्तन के इस कड़े मुद्दे के भीतर समाहित है।
कार्यशाला को 5 तकनीकी सत्रों में विभाजित किया गया। राही से नबोनीता बनर्जी और रीना डियूसूजा ने प्रथम सत्र में बाल यौन शोषण एवं पारिवारिक बाल यौन शोषण क्या है और कैसे होता है। इन पर सत्य एवं मिथक को चार्ट पेपर पर लिखने को कहा और इस पर परिचर्चा की। दूसरे सत्र में इन्होंने 5 प्रश्नों को 5 ग्रुप में विभाजित कर उनके उत्तर को लिखने को कहा और उनके उत्तरों की जाँच उन्होंने अपने उत्तरों से करके सुझाव प्रस्तुत किया। इस सत्र को प्रश्न उत्तरी विधि के माध्यम से बता कर समझाया। इसके बाद 3 सत्र इसी विषय के समझ खोज और रोकथाम पर आधारित थे। इन विभिन्न विधियों के माध्यम से व्याख्यान, पावर प्वाइंट प्रस्तुति, भूमिका निभाना, सवालों के जवाब देने और खेल-खेलने के माध्यम से बाल यौन शोषण के बारे में जागरुकता पैदा करने में सफल रहीं।
महिला अध्ययन केन्द्र के संकाय सदस्य और कर्मचारी डॉ0 आंशू, सुधीर कुमार गुप्ता, बाल कृष्ण, फरहान जावेद, और धीरज ने कार्यशाला को प्रतिभागियों के लिए सफल बनाने में केन्द्र की निर्देशिका की सहायता की।
