आंकडों से नहीं जमीनी कवायद से बदलेगी काशी की सूरत -प्रो विश्वम्भरनाथ मिश्र


मां गंगा नदी नहीं, हैं जीवन की रेखा -महंत
वाराणसी। संस्कृति ,संस्कारों और परंपराओं  की थाती सहेजती पुरातन शहर का अपना अलग मिजाज रहा है । काशी  में सदियों से लोग बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ, माता पार्वती और कलकल , निश्चल होकर बहने वाली मां गंगा को श्रद्धा से लोग निहारने के  लिए आते है। काशी  का एक-एक कण  शंकर हैं ।यह बात संकटमोचन मंदिर के महंत एवं  आईआईटी बीएचयू के प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने बुधवार को  वाराणसी नगर-निगम और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ लोकल सेल्फ-गवर्नमेंट के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित बेटर बनारस समारोह   में कही।
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उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति पुराना होता है उसकी देखभाल और इलाज दोनों बेहद संजीदगी से होनी चाहिए। बनारस अतिप्राचीन है और इसका विकास आंकड़ों पर नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर किया जाना चाहिए तब जाकर शहर की सूरत बदलेगी। उन्होंने कहा कि बनारस का दुर्भाग्य है कि लंका से लेकर गोदौलिया तक की सड़क पिछले 10 वर्षों से जर्जरता की शिकार है जबकि शेरशाह सूरी ने अपने अल्प कार्यकाल में पेशावर से ढाका तक ग्रैंड ट्रैंक रोड (जीटी रोड़) का निर्माण कर दुनिया में मिशाल कायम की थी।

प्रो. मिश्र ने कहा कि माँ गंगा को नदी की संज्ञा देने वाले लोग अज्ञानता के परिचायक है, माँ गंगा कभी नदी नहीं हो सकती। पूरी दुनिया में माँ गंगा का जल ही ऐसा जल है जिसे श्रद्धालु दरश, परश, स्नान और आचमन के लिए दूर-दूर से आते है। माँ गंगा को नदी की संज्ञा देकर लोग अदूरदर्शी सोच का परिचय दे रहे है।
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बनारस की स्वच्छता पर बोलते हुए महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने कहा कि नगर-निगम जब नगर-पालिका था तो काशी चमकती थी। पालिका के कर्मचारी मशक के सहारे नालियों की ऐसी सफाई करते थे कि लोग यह कहते थे कि उपरोक्त नाली की सफाई अभी हुई है उधर गंदगी मत करना, लेकिन जब से नगर पालिका नगर-निगम का रुप लिया तब से इच्छाशक्ति के आभाव में काशी की गालियां और नालियां गन्दगी से कराह रही है। यह दुर्भाग्य है कि काशी की सफाई के लिए दिल्ली और लखनऊ के पंचसितारा होटलों में बैठकर काशी की स्वच्छता का खाका खींचने वाले लोग यह भूल गए है कि नगर-निगम की भी अपनी जिम्मेदारी होती है। आज स्वच्छता को लेकर देशभर में अभियान चलाया जा रहा है मगर पीएम का संसदीय क्षेत्र काशी में दुर्दशा है तो इसके जिम्मेदार केवल अफसर है।
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संकटमोचन फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने कहा कि वर्तमान दौर में यह देखा जा रहा है कि देश के औद्योगिक घरानों द्वारा सिमित अपने आमदनी के 10 फीसदी हिस्सा नगर-निगम को देकर निगम को पंगु बनाया जा रहा है। यह दुर्भाग्य है कि सरकारें नगर-निगम को आर्थिक मजबूती न देकर औद्योगिक घरानों की मजबूरी बना ली है। यह भविष्य के लिए खतरनाक है निगम को इस विशेष कार्य के लिए अपने कोष में धन रखना चाहिए।

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