हरिशयनी एकादशी: एकादशी के बाद चार माह तक नहीं होंगे मांगलिक कार्य


डॉ. राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’
सामान्य रूप से वर्ष में 24 और अधिकमास में 26 एकादशियां होती हैं। इनमें हरिशयनी एकादशी की प्रसिद्धि इस तथ्य से है कि इसी दिन से भगवान विष्णु का शयनकाल प्रारंभ हो जाता है। इसके ठीक चार माह बाद विष्णु जी प्रबोधिनी एकादशी, जिसे देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है, को जागते हैं।

देवशयनी एकादशी, पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी, पद्मनाभा आदि नामों से प्रसिद्ध इस एकादशी व्रत से प्राणी की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की 11वीं तिथि को होने वाली हरिशयनी एकादशी के बाद चार माह तक किसी प्रकार का मांगलिक कार्य नहीं किए जाने का विधान है। इस दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए बलि के द्वार पर पाताल लोक में निवास करते हैं। तभी इस अवधि में वैवाहिक कार्य संपन्न नहीं होते। चातुर्मास जैसी चार माह की आध्यात्मिक साधना की शुरुआत इसी तिथि से होती है।

देवशयनी एकादशी व्रत की कथा का माहात्म्य युग पिता ब्रह्मा ने देवर्षि नारद को बताया था,‘सत्ययुग में  मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट अपनी समस्त प्रजा के साथ सुख और चैनपूर्वक जीवन गुजार रहे थे। एक बार उनके राज्य में लगातार तीन वषार्ें तक वर्षा न होने से भयंकर अकाल पड़ गया। चारों ओर कोहराम मच गया।

प्रजा के कष्ट से राजा बहुत आहत हो रहे थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न हुई? इसी चिंता से  कष्ट मुक्ति के उपाय खोजने के लिए राजा अपनी सेना के साथ जंगल की ओर चले गए। एक दिन उन्हें जंगल में ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि का आश्रम मिला। अंगिरा ने उनका अभिवादन स्वीकार कर घोर जंगल में आने का प्रयोजन पूछा। स्थिति जान-समझ कर अंगिरा ऋषि ने बताया कि राज्य में दुर्भिक्ष की स्थिति इसलिए व्याप्त है, क्योंकि इस क्षेत्र में एक निर्धन तपस्या कर रहा है। उसकी जीवनलीला समाप्त करने के बाद ही इस विकट स्थिति से उबरना संभव होगा। लेकिन सहृदय राजा मान्धाता ने किसी निदार्ेष भक्त को मारने से साफ इंकार कर दिया।

तब अंगिरा ऋषि ने बताया कि तुम आषाढ़ मास के हरिशयनी एकादशी का व्रत रखो। व्रत के प्रभाव से राजा की सभी समस्याओं का अंत हो गया और राज्य में धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो गई। हरिशयनी एकादशी में ब्रजमंडल सहित सम्पूर्ण वैष्णव तीथार्ें में पवार्ेत्सव की अलग धूम रहती है। द्वारिका के प्रधान मंदिर, पुरी के जगन्नाथ मंदिर, गया के श्री विष्णुपद मंदिर, तिरुमल्लै पर्वत के बालाजी तीर्थ सहित देश के सभी विष्णु मन्दिरों में इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। 

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