नोटबंदी ने छीन ली फैक्ट्री वर्कर्स की नौकरियां, अब बर्तन धोने, मोमोज बेचने के लिए हुए मजबूर


नोटबंदी ने छीन ली फैक्ट्री वर्कर्स की नौकरियां, अब बर्तन धोने, मोमोज बेचने के लिए हुए मजबूरनई 

दिल्ली:पश्चिमी दिल्ली के मायापुरी इंडस्ट्रियल एरिया में करीब 1800 फैक्ट्री हैं। यहां जूतें, गाड़ियों के इंजन से लेकर हर चीज बनती हैं। लेकिन पिछले एक महीने से यहां फैक्ट्रियों में काम ठंडा पड़ा हुआ है। नोटबंदी के बाद से कई फैक्ट्रियां बंद कर दी गई हैं, वहीं कई फैक्ट्रियों से लोगों को निकाल दिया गया है। ऐसे में इन फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोग अब दूसरे काम करने को मजबूर हैं।

20 साल के शिवकुमार एक चप्पल बनाने की फैक्ट्री में थ्रेड कटर का काम करते थे, अब वे एक बैंक्वेट हॉल में मसालचीके तौर पर काम करने को मजबूर हैं। 50 साल की गुड्डी देवी को उसी फैक्ट्री से निकाल दिया गया, जहां से शिवकुमार को हटाया गया था। नौकरी जाने के बाद गुड्डी देवी ने सब्जियों का ठेला लगाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें जगह नहीं मिली। क्रश मेटल स्क्रैप फैक्टरी में पावर प्रेस पर बतौर हेल्पर काम करने वाले 30 वर्षीय गुलाब सिंह को भी 12 नवंबर को नौकरी से निकाल दिया गया था। अभी वे चिकन की दुकान चलाते हैं।

मायापुरी में अन्य फैक्ट्रियों में भी नौकरी नहीं है। 25 साल के ऋषि सोनी चाइनीज मोबाइल फैक्ट्री में लाइन सुपरवाइजर के तौर पर काम करते थे। 25 नवंबर को फैक्ट्री बंद कर दी गई। अब मैं मोमोज बेच रहा हूं। हालांकि, ये थोड़ा परेशान करने वाला है, लेकिन क्या किया जा सकता है।' पहले वे फैक्ट्री में 500 रुपए प्रतिदिन कमाते थे, अब वे 300 रुपए कमाते हैं।

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