
लखनऊ, कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार पीके यानि प्रशांत किशोर ने अखिलेश यादव से मुलाकात की है। इससे पहले वे मुलायम सिंह यादव से भी दो बार मिल चुके हैं। अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन होगा?
पीके ने कुछ दिन पहले दिल्ली में मुलायम सिंह व अमर सिंह से मिल कर गठजोड़ की चर्चाओं को हवा दी थी। उसके बाद लखनऊ में प्रशांत किशोर से मुलायम की मुलाकात हुई, तभी से उनकी मुलाकात के निहितार्थ निकाले जा रहे हैं।
पीके व मुलायम की हाल में दो बार मुलाकात के बाद इस सपा व कांग्रेस में तालमेल की संभावनाएं बन सकती हैं। पर, इस मामले में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर द्वारा सवाल उठाया गया है।
सूत्र बता रहे हैं कि पीके कांग्रेस नेतृत्व को समझाने में लगे हैं कि सपा से गठजोड़ से कांग्रेस को फायदा हो सकता है। उधर सपा में शिवपाल रालोद व कांग्रेस से गठजोड़ के पक्षधर बताये जा रहे हैं पर अखिलेश यादव गठजोड़ के बजाए अकेले ही चुनाव में जाने के इच्छुक बताये जाते हैं।
पहले भी हुई थी मुलाकात
इससे पहले प्रशांत किशोर ने पिछले मंगलवार को सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की थी। इस दौरान पार्टी महासचिव अमर सिंह भी वहां मौजूद थे। बैठक में धर्मनिरपेक्ष दलों के एकजुट होकर विधानसभा चुनाव लड़ने पर चर्चा हुई। इस सिलसिले में प्रशांत किशोर की सपा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव से भी मुलाकात हुई थी।
सपा विधानसभा चुनाव में बिहार की तर्ज पर महागठबंधन बनाने की कोशिश में जुटी है। शिवपाल यादव ने जदयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव और रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह से मुलाकात की थी। इसके बाद शरद यादव कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिले। बाद में पार्टी महासचिव और उत्तर प्रदेश के कांग्रेस पार्टी प्रभारी गुलाम नबी आजाद की शरद यादव से उनके घर पर लंबी मुलाकात हुई।
कांग्रेस के अंदर भी यह मांग जोर पकड़ रही है कि उत्तर प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन के लिए किसी दल के साथ गठबंधन जरूरी है। पिछले दिनों पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ बैठक में सभी विधायकों ने गठबंधन की वकालत की। विवादों के बाद सपा की स्थिति कमजोर हुई है। ऐसे में सपा भी अकेले चुनाव लड़ने के बजाय दूसरी पार्टियों के साथ चुनावी गठबंधन को बेहतर विकल्प मान रही है।
सपा, कांग्रेस, जदयू, रालोद और दूसरी कई छोटी पार्टियां मानती है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को रोकने के लिए धर्मनिरपेक्ष दलों का एकजुट होना जरूरी है। ताकि, लोकसभा की तरह भाजपा को वोट बंटवारे का फायदा नहीं मिल पाए।
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