अपने अद्भुत वक्तव्य से वशिष्ठ गुरुजी ने अन्तराष्ट्रीय अधिवेशन में लहराया भारत का परचम, पूरी सभा हुई विस्मित!


खबर प्रभात। प्रयागराज

अन्तराष्ट्रीय समाजिक कार्यकर्ता अधिवेशन 2023 बीकानेर राजस्थान में दुनिया के कोने कोने से सामाजिक कार्यकर्ता 11 एवं 12 मार्च 2023 को प्रतिभागी हुये!जिसमे मुख्यतः सऊदी अरेबिया,भूटान,नेपाल,मिश्र, सिंगापुर ,मलेशिया,इंडोनेशिया, लंका,आदि देश के प्रतिनिधि उपस्थित रहे!इस कार्यक्रम के आयोजक वरिष्ठ समाजसेवी व सैनिक मेवा सिंह जी रहे,जिसमे कारगिल में अपना दोनों पैर गवां चुके नायक दीप सिंह जी प्रथम दिन ,एवम द्वितीय दिन धर्म नगरी काशी के प्रखर वक्ता, सनातन प्रहरी,प्रख्यात घर्मगुरु पूज्य संत श्री रतन वशिष्ठ गुरुजी बतौर मुख्य अतिथि विराजमान रहे।कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ,बात मानवता की चल रही थी,सभी अपने अपने तरीके से मानवता बचाओ की बाते मंच से कर रहे थे,ऐसे में सभी को पता है कि मानवता के नाम पर कैसे सनातन सिद्धान्तों की बखिया उधेड़ी जाती है।लेकिन आज इस सभा बैठे देश और दूनीया के प्रतिनिधि कल्पना नही कर पाए थे कि काशी नगरी भारत के एक युवा संत उस रजवाड़ो की शहर में भी अपने अध्यात्म धर्म और सनातनी ओजस्वी वाणी के अश्व टॉप से सही मानवीय मूल्यों को कुचलने वाले कुचक्रो को निर्मूल कर देगा। महराज श्री को अपने उद्बोधन हेतु आहूत किया गया,फिर क्या था,एक युवा सन्त सनातन विहीन मानवता को धता बताते हुये, मेरे प्यारे वशुधा वाशियो!

नामक वाक्य से अपना वक्तव्य प्रारम्भ किया ओजस्वी और गम्भीर वाणी के साथ मध्य मध्य में वैदिक पौराणिक मधुर श्लोकों से श्रोताओं के मन को हरण करते हुए,दुनिया को बताया कि हम उस धरती से सम्बन्ध रखते है,जो काशी नगरी कंकण कंकण को शंकर मानती है,हम सर्वे भवन्तु सुखिनः की अवधारणा के साथ,वसुधैव कुटुम्बकम,की अवधारणा को पल्लवित करते हैं, अरे हम वो वास्तविक मानवता वादी है जहाँ

गाय पशु नही माता है,पीपल आम बरगद तुलसी आदि वृक्ष साक्षात देवता हैं।यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता की अवधारणा स्त्रियों के लिये थी,कन्याएं दुर्गा स्वरूप थीं,तो बाल साक्षात भगवान थे,अतिथि देवो भवः।गंगा यमुना सरस्वती ,हिमालय ,मेरु गिरी ,गोवर्धन देव आदि पर्वत व नदिया देवी देव की तरह पूज्य थे।कण कण शंकर था।तो नदियों के नर्मदेश्वर व पत्थल शालिग्राम थे।वहीं पृथ्वी माता थी।देहली विनायक,व भोजन अन्न में अन्नपूर्णा,कुत्तों में भैरव,और हाथी में गणेश थे।अरे सजीव तो सजीव निर्जीव बासुरी पुस्तक और वाद्ययंत्रों में सरस्वती विराजमान थी।

तो कमल और उल्लू पर लक्ष्मी,बैल पर शंकर,बाघ पर अम्बे,तो साँप भी नागदेवता के रूप में सर्वत्र पूज्यमान थे।ग्रहों तारो सितारों को देवता,किसी के मरने के बाद उसकी आत्मा को पित्र देव। और फिर नर नर में नारायण और वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा वाला देश रहा है।ऐसे देश को ऐसे सनातनी को भला कौन मानवता का पाठ पढ़ा सकता है।अगर आज मानवता का ह्रास हुआ है तो उसका मात्र कारण भारत पर पाश्चात्य व अन्य संस्कृतियों का दुष्प्रभाव और अनुशीलनता है। आज,हमारे नागरिक  अपने माता पिता गुरु परिवार एवं विश्व की नितांत दुर्गति पर उदासीन ,स्वयं भी प्रकृति परिवार समाज व राष्ट्र में व्यभिचार,अनाचार,भृष्टाचार, दुर्व्यवहार,से कलंकित होकर,नाना प्रकार के व्यशन,बेरोजगारी,बीमारी,व निकम्मेपन से जूझ रहा है,पूरा राष्ट्र आपसी विद्वेष से भरा पड़ा है।

आज आदमी न स्वयं सुख से नही जी पा रहा,परिवार में अशांति व कलह,समाज मे असंतोष व भय व्याप्त है,प्रकृति के आनंद को भी अपने कुकृत्य एवम विज्ञान के झूठे दम्भ से नष्ट किया जा रहा है।

इन सबका मूल कारण मात्र ऋषि परम्परा के उपरोक्त सिद्धान्तों को भूलकर पाश्चात्य तार्किक एकाकी प्रकृति व परिवार विरोधी मूल्य विहीन कुशिक्षा के प्रभाव के कारण है।

अतः अब आवश्यकता है,पुनः सनातनी भारतीय मानक मूल्यों पर आधारित वसुधैव कुटुंबकम ,सर्वे भवन्तु सुखिनः की अवधारणा सहित मानव मूल्यों,प्रकृति साध्य सर्व स्वीकृत शिक्षा व्यवस्था को लागू करने की।जिससे शिशु संस्कारी हो,युवा तेजवान व कर्मठी हो वयोवृद्ध अनुभवी व ज्ञानी हो,समाज मे अभय एवं सन्तोष हो,इसके लिये भारत मे पूर्णतः सनातनी शिक्षा गुरुकुल व कुलगुरु आधारित हो।

गुरुदेव की इस अद्भुत वक्तव्य से पूरी सभा मे तालियों के निनाद होने लगे।

और लोग सत्य सनातन धर्म व साधु संतों के जयकारे करने लगे।इस सच्चाई से प्रभावित अन्य देशों के अन्यधर्मी भी महराज जी से अभिभूत होकर महराज जी से मिलकर गदगद हुए।

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