इलाहाबाद के फुलपुर सीट पर उपचुनाव का रिजल्ट आ चुका है जिसमे भाजपा चारों खाने चित हो चुकी है। तो वहीं सपा बसपा गठबंधन के प्रत्याशी नागेन्द्र सिंह पटेल ने इस सीट से 342796 मत पाकर विजय दर्ज की है। वे कुल 59613 मतों से विजयी घोषित हुए है। दरअसल इसकी आशंका 'कवरेज इण्डिया' ने दे दिन पहले ही जताई थी और एक खबर 'इस बार बीजेपी के हाथ से फूलपुर तो निकला ही समझो' नामक शीर्षक से लगाई थी। आज चुनावी नतीजे आते ही कवरेज इण्डिया की खबर पर एक बार फिरसे से मुहर लग चुकी है। डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने हार को स्वीकार कर समीक्षा करने की बात कही है पर असली बात तो यह है कि आखिर भाजपा को इतना तगड़ा झटका लगा कैसे ? क्या कम वोटिंग प्रतिशत इसकी वजह बनी ? या फिर बीजेपी का अहं उसे फूलपुर सीट पर खा गया ? बाहरी कंडीडेट उतारना भी इसकी एक वजह हो सकती है।
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वैसे इस बार के कई कारण है जिसे हर व्यक्ति अपने अपने तरीके से देख रहा है। जीएसटी की मार से परेशान व्यापारियों ने भी इस बार भाजपा का साथ नहीं दिया तो छोटे एवम् मध्यम अखबार संचालकों में भी बीजेपी के प्रति इस बार रोष था जिसका खामियाजा बीजेपी को उपचुनाव मैं फूलपुर सीट गंवा कर चुकानी पड़ी।
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| दो दिन पहले कवरेज इण्डिया द्वारा प्रकाशित की गई खबर का स्क्रीन शाट्स |
ज्ञात हो कि इलाहाबाद से सैकड़ों छोटे छोटे अखबार निकलते हैं जिससे हजारों लोगों का पेट पलता है जिसपर लगी जीएसटी वापसी को लेकर अखबार मालिकों ने कई बार सरकार के दफ्तरों के चक्कर लगाए पर नतीजा जस का तस।जिस कारण कई अखबार या तो बंद हो गए या फिर बंद होने के कगार पर है जिससे एक बड़ा तबका बीजेपी से नाराज बैठा है। वैसे आम तौर पर जब वोटिंग का प्रतिशत कम होता है तो माना जाता है कि जनता बदलाव नहीं चाहती है। मतदाताओँ में उत्साह में कमी का यह प्रतीक होता है। जब उपचुनाव ऐसी सीट पर हो जो सत्ताधारी पार्टी के पास रही हो और उसकी केन्द्र और राज्य दोनों जगहों में सरकारें हो, तो स्थिति अलग होती है। खासकर तब जबकि इन चुनाव परिणामों का सत्ता के समीकरण पर ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं हो। यह स्थिति सत्ताधारी दल के कार्यकर्ताओं के अतिआश्वस्त या बिल्कुल उदासीन रहने की स्थिति को बयां करता है।

