कवरेज इण्डिया न्यूज डेस्क इलाहाबाद।
इलाहाबाद। आम तौर पर जब वोटिंग का प्रतिशत कम होता है तो माना जाता है कि जनता बदलाव नहीं चाहती है। मतदाताओँ में उत्साह में कमी का यह प्रतीक होता है। जब उपचुनाव ऐसी सीट पर हो जो सत्ताधारी पार्टी के पास रही हो और उसकी केन्द्र और राज्य दोनों जगहों में सरकारें हो, तो स्थिति अलग होती है। खासकर तब जबकि इन चुनाव परिणामों का सत्ता के समीकरण पर ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं हो। यह स्थिति सत्ताधारी दल के कार्यकर्ताओं के अतिआश्वस्त या बिल्कुल उदासीन रहने की स्थिति को बयां करता है।
कम मतदान बीजेपी के लिए चिन्ताजनक
फूलपुर में महज 37.9 फीसदी मतदान बीजेपी के लिए चिन्ताजनक है। पिछले चुनाव में 50.2 फीसदी के मुकाबले इस बार 12.8 फीसदी मतदान कम होने का फूलपुर में बहुत बड़ा मतलब है। यह उस अंतर से लगभग दुगुना है जो पिछले चुनाव में बीजेपी को मिले मत और एसपी-बीएसपी को मिले मतों के योग के बीच का अंतर था।
इलाहाबाद उत्तर में सबसे कम मतदान यानी चिन्ता गहरी
इलाहाबाद उत्तर विधानसभा में बीजेपी की मजबूत पकड़ रही है और यहीं सबसे कम 21.65 फीसदी मतदान हुआ है। पढ़े लिखे प्रबुद्ध मतदाताओँ ने वोट देने में दिलचस्पी नहीं दिखायी है ये मतलब यहां से निकाला जा सकता है। बीजेपी के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी के प्रभाव वाले क्षेत्र में मतदान में इतनी कमी का संकेत एक मात्र है कि बीजेपी को इस विधानसभा में पिछले चुनाव के मुकाबले भारी नुकसान होने जा रहा है।
इलाहाबाद पश्चिम भी पूर्व की तरह ही चिन्ताजनक
इलाहाबाद पश्चिम की बात करें तो यहां 31 फीसदी मतदान हुआ है। इलाहाबाद पूर्व के मुकाबले करीब 9 फीसदी का यह फर्क निश्चित रूप से मुस्लिम मतदाताओं के कारण होगा जहां अतीक अहमद चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि इस फैक्टर से नुकसान एसपी-बीएसपी को ही होना है। मगर, फिर भी इलाहाबाद पूर्व जैसी स्थिति यहां भी बनी हुई है ओर बीजेपी को इस विधानसभा सीट से भी बड़ा नुकसान देखना पड़ सकता है।
ग्रामीण क्षेत्र में अधिक मतदान एसपी-बीएसपी के लिए वरदान
एसपी-बीएसपी के पक्ष में जो बात जा रही है वो है बाकी तीन विधानसभा क्षेत्रों फाफामऊ, सोरांव और फूलपुर में शहरों के मुकाबले मतदान का बेहतर प्रतिशत। फाफामऊ में 43 फीसदी, सोरांव में 45 और फूलपुर में 46.32 फीसदी मतदान हुआ है। हालिया विधानसभा चुनाव से पहले इन सीटों पर एसपी-बीएसपी का कब्जा रहा है।
बीजेपी स्थानीय उम्मीदवार नहीं देना पड़ गया भारी?
बीजेपी ने फूलपुर में कौशलेन्द्र पटेल को टिकट दिया था जो मिर्जापुर के रहने वाले हैं और वाराणसी में मेयर रह चुके हैं। इस वजह से स्थानीय नेताओं में अपने उम्मीदवार के प्रति जोश नहीं था। हालांकि चुनाव रहते हुए यह मुद्दा दबा दिया गया था, लेकिन अब मतदान के प्रति मतदाताओं की उदासीनता को अगर कार्यकर्ताओं के उत्साह के साथ क्लब करके देखते हैं तो यह मुद्दा भारी पड़ गया लगता है।
समीक्षा कहती है फूलपुर बीजेपी के हाथ से निकल गयी
चुनाव के नतीजे तो मतगणना के बाद ही आधिकारिक होते हैं। इस बार कोई एक्ज़िट पोल भी नहीं है कि अंदाजा लगाया जाए कि कौन पार्टी जीत रही है। मगर, राजनीतिक विश्लेषण करते हुए मतदाताओं के उत्साह को पढ़ते हुए और फूलपुर की सभी 5 सीटों पर हुए मतदान पर नज़र डालते हुए समीक्षा यही कहती है कि फूलपुर की सीट बीजेपी के हाथ से निकल गयी लगती है।
