नई दिल्ली। आधार मामले में याचिकाकर्ताओं की इस दलील पर कि सरकार किसी व्यक्ति को एक निजी कंपनी को अपनी व्यक्तिगत सूचनाएं देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती, उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि लोग निजी बीमा या मोबाइल कंपनियों को स्वेच्छा से इस तरह की जानकारी देते हैं। मामले की सुनवाई 23 जनवरी को जारी रहेगी।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि जब आप नौकरी के लिए आवेदन करते हैं तो सबसे पहली चीज पते का सबूत मांगा जाता है तब आपका वेतन बैंक में जाता है। यदि आपको फोन चाहिए तो आप निजी कंपनी में जाते हैं और वह आपसे पते का सबूत मांगता है जो आप देते हैं। लेकिन जब सरकार आपसे यह मांगती है तो आप कह रहे हैं कि यह मेरी पहचान का मूल है।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान जो आधार को चुनौती देने वाले 28 याचिकार्ताओं में से एक के लिए पेश रहे हैं, ने कहा कि एक जाना पहचाना निजी पक्ष और अनजाने पक्ष को जानकारी देने में फर्क है। उन्होंने कहा कि सरकार नागरिकों को अपनी पहचान ऐसे पक्ष को देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती जिसके बारे में कुछ पता नहीं है और जो किसी के नियत्रंण में नहीं है। यह पक्ष इस सूचना का वाणिज्यिक या कोई अन्य प्रयोग भी कर सकता है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता एकत्र की गई सूचनाओं की सुरक्षा को लेकर चिंतित है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने अप्रैल में संसद में खुद कहा है कि पिछले छह वर्षों में उसने 34,000 आधार ऑपरेटर को काली सूची में डाला है, जिन्होंने प्रणाली को प्रदूषित करने का प्रयास किया है। दिसंबर 2016 से लेकर अब तक 1,000 ऑपरेटर के खिलाफ कार्रवाई भी की गई है। उन्होंने कहा कि सूचनाएं एकत्र करने का काम सरकार का है और उस पर ही विश्वास किया जा सकता है लेकिन आधार के लिए निजी ऑपरेटर सूचनाएं एकत्र कर रहे हैं।
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