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| शहीद वाल, इलाहाबाद |
वीरेंद्र पाठक वरिष्ठ पत्रकार
इलाहाबाद। इतिहास के पन्नों में 4 जनवरी का गौरवशाली दिन इलाहाबाद के अतीत का वह स्वर्णिम पन्ना है जिसके बिना आजादी का इतिहास अधूरा रह जाएगा.. आजादी के दीवानों ने इस दिन
मिसाल कायम की । शहीदों के इतिहास को जब भी याद किया जाएगा हर इलाहाबादी का सर फक्र से ऊंचा हो जाएगा कि उनके पूर्वजों ने आजादी में स्वर्णिम योगदान दिया। अंग्रेजों ने आजादी की चाह रखने वाले सत्याग्रहियों के साथ जो क्रूरता की वह याद करके रोम- रोम सिहर उठता है। इसी घटना के बाद कहा जाने लगा कि क्या अंग्रेज हो गए हो !
अपने खून से आजादी की इबारत लिखने वाले हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन्होंने हमें आजादी का सूर्य दिखाया। ऐसी मिसाल प्रस्तुत की जो सदियों-सदियों भी भुलाई नहीं जा सकेगी। धर्म जात पात से ऊपर उठकर आजादी के दीवानों ने अंग्रेजों की बंदूकों के सामने अपना सीना खोल दिया लेकिन पीछे नहीं हटे .।
4 जनवरी के दिन चार लोग अमर शहीद हो गए और उन्होंने यह कुर्बानी बिना किसी चाहत के दी, बिना किसी नौकरी के लालच के दी , उन्होंने एक सपना देखा आजाद भारत का जहां हर भारतीय अमन चैन से रह सके। खुली सांस ले सके और जहां चाहे आ जा सके । इन अमर शहीदों ने अंग्रेजों की क्रूरता देखी थी और वह प्रतिबंध भी देखा था जिसके तहत महात्मा गांधी मार्ग पर वह नहीं चल सकते थे अंग्रेजों ने यहां लिख दिया था कि इस सड़क पर भारतीय और कुत्ते नहीं आ सकते महात्मा गांधी मार्ग का उस समय नाम किंग्स रोड था और यही सब वजह थी जिसके कारण भारतीयों ने सत्याग्रह किया था अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए उन्होंने अपनी आवाज बुलंद की थी और इस आवाज को अंग्रेजों ने किस तरह उड़ता के साथ बंद किया इसकी आज दास्तां हम आपको बताते हैं।
4 जनवरी 1932 को बर्बरता भी इलाहाबाद में शर्मसार हो गयी। अंग्रेजों ने जो जुल्म ढाया कि जुल्म और अंग्रेज एक दूसरे के पर्याय हो गये। 4 देशभक्तो को अंग्रेजों ने घोड़े की टाप से कुचल-कुचल कर शहीद कर दिया।
अंग्रेजों के खिलाफ देशभक्तो- सत्याग्रहियों ने आन्दोलन छेड़ रखा था। दरवेश्वर नाथ मन्दिर से एक जुलूस निकला गया। अंग्रेजो ने उसे आगे रोक लिया। देशभक्ति की चिन्गारी पूरी तरह कुचलना चाहते थे गोरे।सत्याग्रही पीछे हटने को तैयार नही थे। शान्ति से प्रदर्शन कर रहे लोगों को सबक सिखाने के लिए अंग्रेजों ने देशभक्तो पर घोड़े दौड़ा दिये । न नियम कानून और न उम्र देखी ।क्रूरता भी शर्मा गयी, आह कर उठी। घोड़े की टाप से कुचल कुचल कर नियामत उल्ला 62 वर्ष व इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 18 वर्षीय छात्र हर नारायण सहित 4 लोग देश पर कुर्बान हो गये। अंग्रेजों ने निर्धनता पूर्वक घोड़े की टाप से इनको तब तक कुचला जब तक इनके शरीर में जान रह गई थी और इन अमर शहीदों का जज्बा देखिए कि यह सामने खड़े अंग्रेज की बंदूकों से ना डरे और ना पीछे हटे तब मजबूरन अंग्रेजों ने घोड़े की टाप से इन्हें कुचल दिया इनके ऊपर घोड़ा चढ़ा दिया अंग्रेजो की नीति थी कि इतनी दहशत फैलाई जाए जिससे दूसरे विरोध का स्वर ना ऊंचा कर सके उनकी हिम्मत तोड़ दी जाए लेकिन इन चार अमर शहीदों के बलिदान ने अग्नि में घी का काम किया और विरोध की ज्वाला और धधक उठी।
शहादत की ऐसी मिसाल से सर सम्मान से ऊँचा उठ जाता है। इन चार अमर बलिदानियों को इतिहास के पन्ने में दफन कर दिया गया वह स्वर्णिम इतिहास मिटाने का प्रयास किया गया जो आम आदमी ने देश पर अपने को निछावर करके दिया इन चार अमर बलिदानियों के वंशज कौन हैं इसका पता आज तक नहीं चल पाया हां यह जरुर है कि इनके अमर बलिदान को अक्षरो के जरिए कुछ दस्तावेज में जरूर दर्ज किया गया।
4 जनवरी को जो अमर शहीद हो गए उनमें सोहनलाल 30 वर्ष के थे और कपड़े सिलने का काम किया करते थे जिन्हें हम दर्जी भी कहते हैं। इसी तरह सूरज नारायण जो वृद्ध थे लेकिन उनके अंदर आजादी पाने की उमंग थी वह अपने बच्चों को आजाद भारत में सांस लेना और जीना देखना चाहते थे। आजादी पाने की ललक थी इनकी उम्र लगभग 64 वर्ष थी और यह पोस्ट ऑफिस से सेवानिवृत्त कर्मचारी थे । इसी तरह 62 वर्षीय नियामत उल्ला थे जो व्यवसायी थे लेकिन उन्होंने आजादी की जंग में सत्याग्रहियों का साथ देकर अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। जब घोड़ा इन बलिदानियों की तरफ बढ़ा तो इन्हें बचाने के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 18 वर्षीय हरनारायण आगे आये और इन्होंने भी अपना सर्वोच्च बलिदान इस धरती के लिए कर दिया।
क्या इनकी शहादत किसी से कम है ? ये आम आदमी के बीच के शहीद थे। इनके बेटे राजनीतिज्ञ नही थे .... और न ही ये वोट बैंक थे .... कि इन्हें याद किया जाता । लोगों को इनकी जानकारी भी नही दी गयी। किसी ने कभी नाम भी नही लिया गया। इन्होंने बिना किसी स्वार्थ के अपना बलिदान दिया और हमने भुला दिया। नेताओ की जीवनी पढ़ाया गया जिससे उनका परिवार महिमा मण्डित होता रहे लेकिन इनकी शहादत से दूर रखा।किसकी जिम्मेदारी थी इनका सम्मान
आजादी के बाद भी हमने इन्हे कभी याद नही किया। चौराहे और सड़क का नाम रखना दूर की बात।
पहली बार शहीदवाल पर 4 में से दो शहीदों को सम्मान मिला। इन्हें कल 4 जनवरी 2018 को शहादत दिवस पर नमन किया जायेगा।सूरज डूबने से पहले "शहीद वाल" पर 'एक रौशनी इन शहीदों के नाम' की जायेगी। आप आएं और एक रौशनी कर इनकी शहादत को इनको सम्मान दें , जिसके ये हकदार है।
वीर शहीदों को शत्-शत् नमन- ...4 जनवरी शाम 5:00 बजे
शहीद वाल
यहाँ हमने आपके लिए दिये की व्यवस्था करके रखी है।
शहीद वाल । सिविल लाइंस बस अड्डे के सामने ।इलाहाबाद ।
विनम्र आग्रह
अगर आप कुछ न कर सके तो इस खबर को आगे बढ़ाकर शेयर कर ले यह भी शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि ही होगी लोग इन के बारे में जान पाए और आगे आने वाले सालों में इनको भी उसी तरह सम्मान मिले जैसे अन्य शहीदों को मिलता है
