2018 में कुछ तो नया करने वाला है बाॅलीवुड


कवरेज इण्डिया न्यूज डेस्क।
साल ख़त्म होने में बस तीन दिन बचे हैं और इन तीन दिनों में अब कोई भी नयी फ़िल्म रीलीज़ नहीं होने वाली। टाइगर ज़िंदा है तोप का आख़िरी गोला थी, जो चल चुकी है। पाकिस्तान विरोधी राष्ट्रवाद के सीने को जला भी चुकी है, लेकिन 2017 की तमाम फ़िल्मों का निचोड़ यह है कि स्त्रियों की कहानियों का परचम सबसे ऊंचा रहा। संयोग से शुरुआत मेरी फ़िल्म अनारकली ऑफ़ आरा से हुई, फिर नाम शबाना, पूर्णा, बेग़म जान, मातृ, नूर, डियर माया, माॅम, लिप्सटिक अंडर माइ बुर्का, बरेली की बर्फ़ी, सिमरन और हसीना पारकर ने इस मिथ को तोड़ा कि हिंदी फ़िल्में कहानी के केंद्र में स्त्रियों को रखने से परहेज़ करती हैं।

अब सवाल है कि 2018 से क्या उम्मीदें हैं? नये साल में रीलीज़ के लिए जिन फ़िल्मों का ऐलान हो चुका है, उनमें सबसे ज़्यादा जलवा पद्मावती का रहेगा। विवादों की आग में अपना जौहर दिखाने से रह चुकी पद्मावती को देखने के लिए उत्सुक लोगों की जमात काफ़ी बड़ी है। आगाज़ अनुराग कश्यप की मुक्काबाज़ से होने वाली है। इस फ़िल्म में बड़े स्टार कास्ट नहीं हैं, लेकिन अनुराग कश्यप ख़ुद में एक ब्रांड हैं। उनकी पिछली कुछ फ़िल्में नहीं चल पायीं, लेकिन मुक्काबाज़ में वह अपना पुराना रंग लेकर लौट रहे हैं। ठग ऑफ हिंदुस्तान, केदारनाथ और रेस 3 जैसी फ़िल्में भी नये साल की ताक़तवर फ़िल्म होगी।

मेरी नज़र जिन फ़िल्में पर होगी, उनमें सबसे पहला नाम हिचकी का है। लंबे अरसे बाद रानी मुखर्जी को हम देख सकेंगे और जैसा कि ट्रेलर से ज़ाहिर हो रहा है, हिचकी बड़बड़ाने वाले सिंड्रोम की शिकार एक समझदार लड़की की कथा है। कथित बीमारियों के बावजूद किसी भी तरह की हीनताग्रंथि में डूबने से इनक़ार करने वाली एक स्त्री को देखना उम्मीद के ढेर सारे दीये को जलते हुए देखने जैसा होगा।

सुधीर मिश्रा की महत्वाकांक्षी फ़िल्म दास देव भी फरवरी में रीलीज़ होगी, जो शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की अमर कृति देवदास का राजनीतिक संस्करण है। यह फ़िल्म बहुत पहले से बन कर तैयार थी, लेकिन निर्माताओं में विवाद के चलते रीलीज़ नहीं हो पा रही थी। यह विवाद सुलझ गया है और सुधीर मिश्रा की मेधा का एक और नज़ारा देखने से जुड़ी दुविधाएं मिट गयी हैं।

स्क्रीनप्ले राइटर अक्षत वर्मा की कालाकांडी उनकी डेब्यू फ़िल्म होगी, जो काफी लंबे अरसे से बाॅलीवुड के दरवाज़े पर ज़ोरदार दस्तक देने के लिए तैयार बैठे थे। उन्होंने आमिर ख़ान प्रोडक्शन में बनी अनोखे कथानक की फ़िल्म डेल्ही बेली की पटकथा लिखी थी और क्रिएटिव डायरेक्शन किया था। यह फ़िल्म अक्षत ख़ुद निर्देशित करना चाहते थे, लेकिन आमिर ख़ान ने तब उन पर भरोसा नहीं किया था। तब से लेकर कालाहांडी तक पहुंचने में उन्हें सात साल लगे हैं, तो ज़ाहिर है इन सालों में उन्होंने कोई बड़ी खिचड़ी तो पकायी ही होगी।

अंत में लाइटर नोट के साथ कहना चाहता हूं कि नये साल में मेरी भी कोई फ़िल्म हो सकती है, लेकिन जिसका ऐलान हमने अभी तक किया नहीं है। मेरी नयी फ़िल्म के लिए इस साल आपको सिर्फ़ ऐलान की प्रतीक्षा करनी हो सकती है।

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