रोहित पाण्डेय/कोराॅव।
इलाहाबाद। भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा भले ही किसानों की फसलों का उचित मूल्य दिलाने के लिए क्रय केंद्रों पर पारदर्शिता से धान खरीद के लिए निर्देश जारी किए गए है लेकिन इसकी ज़मीनी हकीकत अलग होने से किसानों की समस्याओं में कमी होती नही दिख रही है और धान खरीद करने वाले व्यापारियों और विभागीय अफसरों की मिलीभगत से हो रहा कागजी खेल रुकने का नाम नही ले रहा है केंद्रों पर किसानों को अपनी धान बेचने के लिए समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और जिन किसानों को धान बेचने के लिए किसी भी केंद्र से टोकन नही मिल पाया है उनकी धान बिचौलियों और व्यापारियों द्वारा औने पौने दाम पर खरीद की जा रही है लेकिन हैरत की बात यह है कि अपनी धान को व्यापारियों के हाथ कम दामों पर बेचने वाले किसानों को भी अपनी खतौनी,के अलावा अन्य सभी कागजात देने पड़ रहे है और उनकी धान का पैसा भी उनके खातों में ही भेजा जा रहा है अब सवाल यह पैदा होता है कि जब किसान व्यापारी के हाथ अपनी फसल बेच रहा है तो उसको भी पैसे के लिए वही प्रक्रिया अपनानी पड़ रही है जो प्रक्रिया धान खरीद केंद्रों पर किसानो द्वारा की जा रही है आरोप है कि व्यापारियों द्वारा किसानों की धान किसी केंद्र पर पहुचा कर उसकी सरकारी कीमत ली जा रही है और किसान की मेहनत का लाभ उसको न मिलकर बिचौलियों और कमीशनखोर अधिकारियो के पास जा रहा है और किसान की जिस फसल की कीमत तो सरकारी रेट दिखाई जा रही है लेकिन किसान को सरकारी कीमत नही मिल रही और कागजी हेरा फेरी करके बिचोलिये और अधिकारी माला माल हो रहे है और किसान हाड़ तोड़ मेहनत के बावजूद किसान भुखमरी के कगार पर दिख रहा है और सरकारी मंशा पर लगातार सवाल खड़े हो रहे है अब इसका जिम्मेदार कौन है इस सवाल का जवाब किसी के पास नही दिख रहा
