के माध्यम से समय≤ पर बहुत से सामाजिक प्रश्नों को उठान में कामयाबी मिली है। 70 के दशक में जब सिनेमा मनोरंजन का अकेला माध्यम था उस समय भी अने के सार्थक फिल्मों का निर्माण हुआ तथा देश के प्रभुत्व दर्शक आज तक उन सिनेमा कृतियों को याद रखते हैं तथा देखते भी हैं। आज के दौर में भी इस तरह के सार्थक सिनेमा के निर्माण की जरूरत एक सामाजिक जरूरत है तथा साहित्य के विकास की एक अनिवार्य आवश्यकता भी है। मण्डलायुक्त ने यह भी कहा कि सिनेमा आज के साहित्य की सबसे प्रबल दृश्य विधा है तथा इसके माध्यम से सामाजिक जागरूकता के साकारात्मक संदेशों को प्रबलता के साथ संप्रेषित किया जा सकता है। इस लिये सार्थक सिनेमा मनोरंजन सिनमा के साथ-साथ सिनेमा साहित्य की अनिवार्य आवश्यकता है। आज के दौर में भारतीय सिनेमा के सम्बन्ध में इस तरह की राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन एक प्रसंशनीय कार्य है। इस अवसर पर उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका अनहद लोक के छठवे संस्करण का लोकापर्ण किया।
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