कवरेज इण्डिया धर्म कर्म।
सृस्टि में कुछ भी ग्रहो और यूनिवर्स के परे नही है,ब्रह्माण्ड में अनंत शक्तिया अपनी निश्चित धुरी दिशा और दशा पर कार्य करती है।रावण को हम एक बुराई के रूप में देखते है,बहुत ही अहंकारी था रावण-कहते है-
अहंकार में तीन गए धन वैभव और बंश।
ना मानो तो देख लो रावण कौरव कंश।।
आइये जानते है रावण के बारे में
रामायण में वाल्मीकिजी ने रावण के लिए अनेक शब्दों का प्रयोग किया है- रावण, लंकेश, लंकेश्वर, दशानन, दशग्रीव, शकंधर, राक्षससिंह, रक्षपति, राक्षसाधिपम्, राक्षसशार्दूलम्, राक्षसेन्द्र; राक्षसाधिकम्,.
इन नामो से भी रावण के जीवन का ज्ञान होता है
वैसे रावण 9 मंत्री थे' मंत्री अर्थात जो मन को त्राण दे,मन को मोड़े मन को चलाये,मन का कारक गृह चन्द्रमा है,रावण के सम्बन्धो पर एक नजर करिये,आप पाएंगे की उसकी किसी रिश्ते से ठीक से नही बनती थी,चाहे वो भाई हो,(विभीषण)पत्नी हो(मन्दोदरी)बहन हो(सुरपुनखा)पिता हो(विस्वस्रवा)या की नाना हो (माल्यवान)देवता हो (इन्द्रादिक)या फिर स्वयं गुरु साधू सन्त हो या फिर स्वयं परम पिता परमेश्वर के स्वरूप श्री राम हो,या बंदर भालू जीव हो रिस्तो में कुल 9 मूल्य होते है,10वां स्वयं से स्वयं का रिश्ता होता है,शरीर से आत्मा का इन सभी लौकिक रिस्तो को तो आप लोग जानते ही हो किन्तु ,उसके अहंकार का पैमाना ऐसा था जो वह स्वयं की भी स्वयं से रिश्ता नहीं रख पाया था ,मतलब अहंकार ही सर्वोपरि था।
इन रिश्तों में कुछ विशेष मूल्य छिपे होते है,जैसे स्वयं और परमात्मा के बिच *विस्वास* जो 1अंक का प्रतिनिधित्व करता है।और यह पिता के रिश्ते को बताता है,जो रावण हार गया।
2स्वयं से माँ के रिश्ते के मध्य ममता जो चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व करता है,यह भी हार गया रावण।
3,प्रेम जो गुरु भगवन्त सन्त और शिष्य के मध्य प्रवाहित है,जो वृहस्पति का प्रतिनिधित्व करता है यह भी हार गया रावण,इस रिश्ते को भी नही निभा पाया।
4-स्वाभिमान और अभिमान का अंतर समझ नही आया ससुराल के भी रिश्तों को हार गया जो राहु का द्योतक है।
5-बुद्धि का सही प्रयोग बहन बुआ बेटी और राजकुमार के रिश्ते को हारा,सुपूर्णखा के कारण हार भी हुई।और यह रिश्ता भी हार गया रावण।
6-पत्नी का प्रतिनिधित्व करने वाले शुक्र गृह का भी सम्बन्ध खो दिया,जिसमे स्नेह सम्मान मूल्य है। मन्दोदरी की बात न मानकर।की सीता को लौटा दो राम को।
7-अपने और दूसरे के धर्म को प्रवित्ति को उचा निचा बताना,सूर्यवंसि और पुलस्ति बंस राक्षस और मानव बंदर का भेद रखकर प्रकृति से सम्बन्ध खराब किया केतु इसका प्रतिनिधि है।
8-शनि जिसका प्रतिनिधित्व करता है,ऐसे नाना दादा बुजुर्ग व्यक्ति या मजदुर सैनिक इन रिश्तों का भी गलत उपयोग किया शनि खराब,जबकि शनि न्याय करता है।
9-भाई से विरोध अकारण क्रोध अहंकार करना मंगल का द्योतक,इस रिश्ते को भी खराब किया।इसमें स्नेह मूल्य होता है।
10-इसमें 1आत्मा और 0 परमात्मा दोनों रिश्ते खराब कर लिए इस लिए रावण दस हार गया।
दसहरा इसलिये मनाई जाती है।
और 'विजयदशमी' आप सभी जानते है की राम ने सभी रिश्तों को बखूबी निभाया-पिता के वचन और माँ के वरदान के लिए राजमहल छोड़ दिया,भरत के लिए राजगद्दी छोड़ दी,सीता पत्नी शुक्र को साथ साथ रखा,उनके लिए रावण जैसे महा बलशाली से लड़े।
सेवक हनुमान के लिए आज भी मृत्युलोक पर अपनी प्रभुता कम कर दी।गुरु वशिष्ठ की हर आज्ञा मानी,संत और गुरु विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा की,कोल भील से भी उत्तम मित्रता निभाई।सुग्रीव की मित्रता के लिए ही बाली वध किया।
और जिव जंतु पेड़ नदी सबसे प्रेम किया,और गुरु से आत्म ज्ञान लेकर आत्मा परमात्मा की विद्या जानी, अतः विजय दशमी राम की हुई।
आज भी मानव यदि अपने सभी रिश्तों को ठीक कर ले तो वो राम है,उसके सभी ग्रह ठीक होंगे।
और जो सभी रिश्तों को खराब करें वही रावण है उसके सभी गृह खराब होंगे।बाकी कहानिया बहुत आप पढ़ते है।पर काम की बात व्यवहारिक बात यही है,सभी रिश्तों को अच्छा रखें यही सच्चा ज्ञान है,इसी से सुख और शांति है स्वयं विचार कीजिये।
वशिष्ठ जी महराज
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