ब्युरो रिपोर्ट कवरेज इण्डिया।
समाजवादी और उनके नेताओं पर हमेशा से ये आरोप लगते रहे हैं कि उनकी जब भी सत्ता में सरकार आती है वो जातिवाद को बढ़ा देते हैं। इस बार के यूपी चुनाव में अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी की करारी हुई है। इस हार के पीछे उनके यादव प्रेम को भी बड़ी वजह मानी जा रही है। लेकिन, अब भी मुलायम परिवार पर ये आरोप लग रहे हैं कि उनका यादव प्रेम खत्म नहीं हो रहा है। अखिलेश अपनी गलतियों में सुधार करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं। एक बार फिर पार्टी में प्रमुख जगहों पर यादव जाति से जुड़े नेताओं को ही बिठाया गया है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या समाजवादी पार्टी भविष्य में इस जातिवाद से बाहर निकल पाएगी। या फिर इसी में फंसी रहेगी।
पिछली सरकार में हमेशा से अखिलेश पर ये आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान हर प्रमुख जगह पर यादव जाति के अफसर या नेता को तैनात किया था। जबकि बाहर ये दिखाने की कोशिश की जाती है कि समाजवादी पार्टी के भीतर पूरा लोकतंत्र है। सभी के विकास का दावा किया जाता था। लेकिन, ये सारी बातें जनता को भी दिखाई पड़ रही थीं। शायद यही वजह थी कि इस बार के चुनाव में अखिलेश को करारी हार का सामना करना पड़ा। क्योंकि प्रदेश में गुंडाराज हो गया था। एक जाति विशेष के लोगों का वर्चस्व बढ़ गया था। वो सत्ता की हनक में रहते थे। हर किसी पर अपनी धौंस जमाते थे।
लेकिन, जनता से अखिलेश से उनकी सत्ता की हनक छीन ली और सड़क पर ला खड़ा किया।
लेकिन, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इस हार से सबक लेने की वजाए पुरानी गलतियों को ही दोहराने में व्यस्त हैं। अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में जिसे नेता प्रतिपक्ष बनाया है वो भी यादव जाति से ही आते है। जी हां राम गोविंद चौधरी यादव जाति से ही आते हैं। जबकि विधानमंडल के अध्यक्ष पद पर अखिलेश यादव खुद विराजमान हैं। लोकसभा के भीतर मुलायम सिंह यादव पार्टी के नेता हैं तो राज्यसभा में उनके भाई और टीपू के चाचा रामगोपाल यादव पार्टी के नेता के तौर पर अपनी भूमिका निभाते हैं। यानी विधानसभा से लेकर लोकसभा तक पार्टी के प्रमुख पदों पर यादव जाति के लोगों का ही अधिकार है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या दूसरी जाति के बड़े नेता समाजवादी पार्टी में नहीं हैं।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की हार की बड़ी वजहों में यादवों का प्रभुत्व भी एक वजह थी। जिसका भारतीय जनता पार्टी ने पूरा फायदा उठाया था। समाजवादी पार्टी में यादवों का प्रभुत्व ऐसा है कि अब ये पार्टी ओबीसी में आने वाली दूसरी जातियों से दूर हो रही है। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए सभी दलों ने महागठबंधन की कवायद शुरु कर दी है। लेकिन, जिस तरह कांग्रेस गांधी परिवार से नहीं उबर पा रही है वहीं समाजवादी पार्टी मुलायम परिवार से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं। थोड़ा बहुत उठता भी है तो वो यादव जाति में जाकर फंस जाता है। ऐसे में कहा यही जा रहा है कि जब तक इस तरह के दल सेक्युलरिज्म और यादव-जाटव की राजनीति नहीं छोड़ेंगे जन समर्थन मुश्किल होगा।
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