ध्रुव गुप्त।
उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा गंगा और यमुना नदियों को जीवित मानव का दर्ज़ा दिया जाना एक ऐतिहासिक फैसला है। अभी तक विश्व में न्यूजीलैंड की वानकुई नदी को ही जीवित मनुष्य के समान अधिकार प्राप्त थे। इस फैसले से नदियों को स्वच्छ और अविरल बनाने के प्रयासों को गति मिलेगी। उम्मीद है कि देश की दूसरी नदियों को भी हम मनुष्यों के समान अधिकार दिलाने की मुहिम तेज होगी। अगर ये नदियां मानव हैं तो ज़ाहिर है कि उन्हें अपनी इच्छा से बहने का अधिकार भी होगा।
आप जगह-जगह उन्हें बाँध कर उनकी अविरलता के अधिकार का हनन नहीं कर पाएंगे। अगर ये नदियां मानव है तो उन्हें स्वच्छता का अधिकार भी हासिल होगा। लोग अपने घरों की गंदगी निकाल कर नदियों में डालकर उन्हें प्रदूषित नहीं कर सकेंगे। गंगोत्री ग्लेशियर से निकलने के बाद गंगा की धारा को इस बेरहमी से बांधा, बांटा और मोड़ा गया है कि उत्तराखंड से उत्तर प्रदेश में घुसते ही वह गंदे नाले में बदल जाती है।
उसके बाद शुरू होता है उसमें जहरीले औद्योगिक कचरों, शहरों की गंदी नालियों के पानी और मल-मूत्र के विसर्जन का अंतहीन सिलसिला। गंगा-जमुना का पानी न पीने लायक रहा, न नहाने लायक और न खेतों की सिंचाई के लायक। गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के बावज़ूद देश की कांग्रेस या भाजपा सरकार ने गंगा के लिए कुछ नहीं किया। हाई कोर्ट के इस फैसले से अब इन नदियों की सफाई और अविरलता सरकार की मर्जी की मोहताज़ नहीं होगी।
अब इन नदियों को वे सारी संवैधानिक और कानूनी सुरक्षाएं हासिल है जो इस देश के नागरिकों को हासिल हैं। उनके साथ अनाचार और दुर्व्यवहार की वही सजाएं होंगी जो लोगों के साथ अनाचार और दुर्व्यवहार की होती हैं। हम नागरिकों को भी अब यह अधिकार होगा कि न्यायालयों में मानव के रूप में नदियों के अधिकार सुनिश्चित कराने के लिए अर्जियां डाल-डालकर सरकार को उनकी स्वच्छता और अविरलता बहाल करने के लिए मजबूर कर सकेंगे। इसमें किसी भी ढिलाई के लिए सरकार को सजा भी दिलाई जा सकेगी।
हमारे आएं या न आएं, उम्मीद है कि उत्तराखंड हाई कोर्ट के इस फैसले से हमारी नदियों के अच्छे दिन ज़रूर आएंगे !
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