इलाहाबाद: बसपा से मंत्री रह चुके राकेशधर त्रिपाठी एक बार फिर चुनाव मैदान में उतर आये हैं। हालांकि हंडिया से चार बार विधायक रहे राकेश इस बार पाला बदलकर भगवा दल के गठबंधन की नाव पर सवार हैं। अपना दल अनुप्रिया पटेल ने त्रिपाठी को हंडिया से टिकट दे दिया है। जिससे न सिर्फ त्रिपाठी के खत्म होते राजनैतिक कैरियर को सहारा मिल गया । बल्कि हंडिया विधानसभा सीट पर चुनाव भी दिलचस्प हो गया है ।
भाजपा सरकार व बसपा सरकार में राकेशधर त्रिपाठी यही से विधायक बने फिर उच्च शिक्षा मंत्री रहे हैं। अाय से अधिक संपत्ति के मामले में वह जेल में बंद थे। अभी अभी वे जेल से छूटे हैं और तुरंत टिकट मिलते ही चुनावी मैदान में प्रचार प्रसार करने उतर गये हैं।वासुदेव यादव की साख दांव पर
हंडिया विधानसभा का चुनाव इसलिये अधिक महत्वपूर्ण हो जाता हैं क्योंकि यहां समाजवादी पार्टी ने अपने विधायक का टिकट काट कर पार्टी के खासमखास वासुदेव यादव की बेटी निधि यादव को टिकट दे दिया है। वासुदेव यादव यूपी बोर्ड के सचिव रहे हैं। बीते एमएलसी चुनाव में भाजपा के रईश चन्द्र शुक्ला को हराकर मौजूदा एमएलसी भी हैं। इनकी गिनती सपा परिवार के बेहद करीबियों में होती है। वासुदेव के प्रभाव के चलते ही निधि को टिकट मिला है। जहां निधि के साथ वासुदेव की साख भी दांव पर है। निधि यादव इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्र नेता है। अभी वह राजनैतिक विषय पर ही विदेश दौरे पर भेजी गई थी ।
हंडिया में भाजपा ने भी दूर की गोट खेलते हुये इस सीट को अपना दल के पाले में डाल दी। क्योंकि वहां पटेल बिरादरी का बड़ा वोट बैंक है । ब्राह्मण कैंडिडेट होने के कारण व अपनी विशेष पहचान व वोट बैंक पर पकड़ के चलते राकेश धर त्रिपाठी खासे मजबूत साबित हो सकते है। चार बार विधायक रहना ही अपने आप में बड़ी बात है। वैसे भी शिक्षा मंत्री रहते हुये हंडिया के लिये काफी कुछ करने वाले त्रिपाठी ने चुनाव मैदान में आकर भाजपा के लिये बड़ा विकल्प दिया है। भाजपा सीधे तौर पर इन्हे टिकट देती तो वह राजनैतिक लोगो के निशाने पर रहती। लेकिन अपना दल के माध्यम से भाजपा ने सही निशाना लगाया है।
आइए बताते हैं आपको राकेशधर त्रिपाठी की कुछ खास बातें
इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्रसंघ अध्यक्ष चुनाव लड़े और 1982 में अध्यक्ष चुने गये। 1985 में जनता पार्टी के टिकट पर पूर्व गृह मंत्री राजेन्द्र त्रिपाठी को पटखनी दी। 1989 में जनता दल से लड़े और बसपा के शीतला बिंद को शिकस्त दी। लेकिन 1991 व 1993 में वह हार गये । 1996 में बतौर भाजपा प्रत्याशी जीत कर उच्च शिक्षा मंत्री बने। 2002 में सपा के महेश नारायण सिंह से हार गये। लेकिन 2007 में राकेशधर बसपा के टिकट पर जीते और मायावती सरकार में फिर उच्च शिक्षा मंत्री बने। इसी दौरान अाय से अधिक संपत्ति मामले में फंस गये और जेल भी जाना पड़ा ।
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