हां, कोई माने या न माने अपना दो टूक मानना है कि बिडला-सहारा डायरी की जांच की मांग का सुप्रीम कोर्ट में खारिज होना नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी राहत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिलो-दिमाग का भारी बोझ खत्म हुआ है। वे अब पूरे दमखम और आत्मविश्वास में विरोधियों से निपटेंगे। विधानसभा चुनाव में डटकर प्रचार करेंगे। एक तरह से 11 जनवरी भी उनका टर्निंग पाइंट हुआ। मैंने 3 जनवरी को लिखा था कि 2017 नरेंद्र मोदी का वर्ष है और इस वर्ष की राजनैतिक सफलता से 2019 का उनका रास्ता अपने आप साफ होगा। इस सिनेरियो में 11 जनवरी के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मनौवेज्ञानिक अहमियत बहुत है। इससे नरेंद्र मोदी और विरोधियों के रिश्तों में सत्तापक्ष जैसे मजबूत बना है उससे अपने आप सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स आदि एजेंसियों से कांग्रेस, बसपा, सपा, ममता पार्टी, अरविंद केजरीवाल के नेताओं पर 2017 में डंडा चलना है। देश में जबरदस्त राजनैतिक टकराव होगा और चुनावी जीत की वजह से इसमें नरेंद्र मोदी का झंडा ऊंचा उठता जाएगा।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अखिलेश बनाम मुलायम के झगड़े का मामला सुलटा नहीं है। बहुत संभव है साईकिल का चुनाव चिन्ह जप्त हो और अखिलेख-मुलायम सिंह के दोनों धड़े नए चुनाव चिन्ह से चुनाव लड़े। तभी फिलहाल इस वक्त की चुनावी तस्वीर में तो उत्तर प्रदेश में भाजपा दो-तिहाई सीटों से चुनाव जीतती लगती है। उत्तराखंड, गोवा में भाजपा मजे से चुनाव जीतेगी तो पंजाब में अमित शाह ने जैसे टिकट बांटे है उससे भाजपा का अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन संभव है।
यदि सुप्रीम कोर्ट बिडला-सहारा की डायरी की जांच के आदेश देता तो नरेंद्र मोदी सचमुच दबाव में आ जाते। इसका अर्थ यह नहीं कि मामला हमेशा के लिए दब गया है। राजनीति अब इतनी टकराव वाली हो गई है और राहुल गांधी को जैसे मजा आने लगा है व ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल आदि के लिए आगे जीवन-मरण वाला जो टकराव है तो झगड़ा बढ़ेगा ही। नरेंद्र मोदी पर खूब हमले होंगे। दोनों तरफ से गोलबंदी बढ़ती जाएगी लेकिन इसमें ज्योंहि उत्तर प्रदेश में भाजपा जीती तो विपक्ष का हल्ला बेजान हुआ मिलेगा।
नरेंद्र मोदी-अमित शाह ने उत्तर प्रदेश चुनाव जीतने के सभी बंदोबस्त कर लिए हैं। भाजपा बहुत बारीकि से हर दांव ठिक चल रही है। एक फरवरी का केंद्र सरकार का आम बजट मनभावन होगा तो 22 फरवरी को मुबंई महानगरपालिका और महाराष्ट्र की नगर पालिकाओं-पचायतों के चुनाव भी भाजपा की जीत की खबर लिए होंगे। इससे राष्ट्रीय स्तर पर, उत्तर प्रदेश में मतदान के बाकि 3 चरणों में भी मतदाताओं में यह भरोसा बनेगा कि भाजपा जीत रही है।
मतलब बड़े नोटों को बंद करने से गरीब जनता में नरेंद्र मोदी की जो साहसी-मर्द इमेज बनी है उसे मतदान तक कायम रखवाने के बंदोबस्त पक्के हैं। नोटबंदी से आर्थिकी के भट्टे बैठने व आर्थिक तकलीफों को यूपी के मतदान तक न उभरने देने के भाजपा ने ऐसे बंदोबस्त किए हैं जिससे चुनाव एकतरफा बने।
समाजवादी पार्टी का झगड़ा, मायावती की प्रॉपर्टी, भाई के खातों का हल्ला भी चुनाव में चलेगा तो गरीब के लिए सबकुछ करने का प्रचार भी भाजपा का होगा। भाजपा के टिकटों का हिसाब अभी यों बनना है मगर पंजाब में अमित शाह ने जैसे उम्मीदवार छांटे हैं उसका अर्थ है कि नरेंद्र मोदी-अमित शाह दोनों चुनाव जीतने को ले कर पूरी तरह आश्वस्त हैं। वहां सब प्लान किया हुआ है जिससे विपक्ष खड़ा न हो सके।
इस प्लान के आगे विपक्ष दस तरह की मजबूरियों और गलतफहमियों में है। न तो बिहार जैसी महागठबंधन वाली एकजुटता है और न दिल्ली की आम जनता में केजरीवाल की उस वक्त बनी आंधी जैसी कोई हवा किसी राज्य में विपक्ष की है। अपवाद अखिलेश यादव बन सकते हैं लेकिन अभी उनके यहां इतना गिचपिच है कि उस बारे में कुछ सोचा ही नहीं जा सकता।
सो फिलहाल इन पंक्तियों के लिखने तक तो नरेंद्र मोदी का भाग्य जस का तस बलवान है। अपने को लग रहा है कि विधानसभा के आगामी चुनाव एकतरफा होने हैं। (पुनश्चः-यह आंकलन सपा और एलायंस की धुंधली तस्वीर की आज की हकीकत पर है। 3 जनवरी को भी भाजपा विरोधियों के बिखरे होने का फैक्टर था और आज भी है।)
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