स्वास्थ्य मंत्री के जिले में भी बदहाल है स्वास्थ्य सेवाएं,आखिर कब होगा सुधार!


 रमेश तिवारी की रिपोर्ट। कवरेज इण्डिया, कोरांव(इलाहाबाद)
 आमजन तक त्वरित, सस्ते और सुलभ स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने की कटिबद्धता सरकारें भले ही जताती हों लेकिन धरातल पर इन सुविधाओं की पँहुच से ग्रामीण कोसो दूर हैं।स्वास्थ्य क्षेत्र की मजबूती के लिए बजट का एक बड़ा हिस्सा पानी की तरह बहाया जा रहा है लेकिन उसका लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा है, जिससे लाचार ग्रामीण निजी अस्पतालों में इलाज के लिए जाने को मजबूर हैं।प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे झोलाछाप चिकित्सकों के संजाल में फंस कर मरीज एक ओर जहां अपनी गाढ़ी कमाई लुटा रहा है वहीं दूसरी ओर अपनी सेहत भी दांव पर लगा रहा है।प्राइवेट अस्पताल प्रबंधनों की मनमानी और निरंकुश लूट से समाज का गरीब और लाचार वर्ग शोषण का शिकार हो रहा है।
       जनपद मुख्यालय से सुदूर मध्यप्रदेश से सटे एवं सरकारी तमाम लाभकारी योजनाओं से वंचित कोरांव तहसील क्षेत्र की स्थिति भी कुछ इसी तरह की है।यहां के ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए सैकड़ो किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है।कहने को तो क्षेत्र में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अलावा दर्जनों की संख्या में प्राथमिक व नवीन स्वास्थ्य केंद्र खुले हुए हैं लेकिन सीएचसी को छोड़कर सभी केंद्रों में ताला लटकता रहता है।इन केंद्रों पर चिकित्सको व आवश्यक दवाइयों के अभाव में ग्रामीण झोलाछाप की शरण में चला जाता है, जहाँ उसे अपने धन की बर्बादी तो करनी ही पड़ती है कभी कभी जान भी गवांनी पड़ जाती है।सरकारी चिकित्सक शहरों को छोड़कर सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में जाने को तैयार नहीं होते और न ही सरकारी तौर पर कोई ठोस नीति इस तरह की है कि चिकित्सक निष्ठापूर्वक गांवों में ग्रामीणों के बीच में रहकर उनका इलाज करे।एक बड़े क्षेत्रफल में इकलौता सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कोरांव में स्थित है,लेकिन इतनी बड़ी जनसंख्या को त्वरित व सुलभ स्वास्थ्य सुविधाओं को उपलब्ध कराने में अपने आप को असमर्थ महसूस करता है।इस केंद्र पर भी तमाम आवश्यक दवाओं का निरंतर अभाव बना रहता है, जिसके चलते यहां तैनात चिकित्सक परामर्श के दौरान एक अलग चिट पर बाहर की दवाएं लिखते हैं और मरीज बेबसी में बाहर से मंहगी दवाएं लेता है।कभी कभी पैसों के अभाव में रोगी उन बाहर की दवाओं को नहीं खरीद पाता जिससे उसकी सेहत में अपेक्षित सुधार नहीं होता है।कुत्ते या अन्य जंगली जानवरों के काटने पर डॉक्टर रैबीज का इंजेक्शन लगवाने की सलाह देते हैं परंतु यहाँ रैबीज के इंजेक्शन का भी टोटा बना रहता है।इतना ही नहीं यहाँ जिम्मेदारों द्वारा सुरक्षित प्रसव कराने का भी दावा किया जाता है लेकिन जिन कमरों में प्रसव कराया जाता है वहाँ साफ सफाई का अभाव होता है जिससे जच्चा व बच्चा को संक्रमण का खतरा बना रहता है।इस केंद्र पर गर्भवती महिलाओं के परिजनों को भी अन्य आवश्यक दवाएं व इंजेक्शन बाहर से ही ले आना पड़ता है।यहाँ नियुक्त स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी व एनमअपने आप को बंद कमरों तक ही सीमित रखना मुनासिब समझते हैं।टीकाकरण, सुरक्षित मातृत्व और तमाम जानलेवा बीमारियों के बारे में बताने और उनसे बचने के लिए होने वाले उपायों को बताने में अहम भूमिका निभाने वाली आशाओं को भी यहाँ शोषण का शिकार होना पड़ता है, जबकि आशाए ग्रामीणों और स्वास्थ्य केंद्रों के बीच एक सशक्त सेतु का काम करती है।इनकी निरंतर हो रही उपेक्षा के कारण उनके आत्मबल व उत्साह पर लगातार विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
        बताते चलें कि पूरे तहसील क्षेत्र में महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए एक महिला अस्पताल की संस्थापना की गई थी, जो अपनी स्थापना के बाद से ही उपेक्षित रहते हुए अपनी तंगहाली बदहाली पर आंशू बहा रहा है।नीति निर्माताओं, जनप्रतिनिधियों और विभागीय अधिकारियों की उदासीनता और संवेदनहीनता के चलते महिला अस्पताल पूरी तरह से निष्प्रयोज्य और जर्जर हो चुका है।पूरा परिसर कूड़े के ढ़ेर से पटा पड़ा है।इस महिला अस्पताल में किसी भी महिला चिकित्सक को लोगों ने नहीं देखा है।योग्य चिकित्सक की बात तो दूर यहाँ वार्डब्वॉय और एक अदद सफाईकर्मी तक की नियुक्ति विभाग द्वारा नहीं की जा सकी है। 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान सूबे के निवर्तमान लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव का उड़नखटोला यहाँ जब उतरा था तो स्थानीय लोगों ने उनसे इस महिला अस्पताल को पुनःजीवंतकरने की पुरजोर मांग की थी और मंत्री ने लोगों को आश्वश्त व विश्वश्त किया था कि चुनाव आचार संहिता समाप्त होते ही इस दिशा में सार्थक प्रयास शुरू कर दिए जाएंगे,परंतु विडम्बना कि आज तक महिला अस्पताल की स्थिति जस की तस बनी हुई है।इतना ही नहीं तमाम आंचलिक सामाजिक कार्यकर्ताओ के द्वारा जिम्मेदारों को निरंतर चिट्ठियां लिखी जा रही हैं परंतु सबके सब मूकदर्शक बने हुए हैं।
      आंचलिक लोगों का इस संदर्भ में कहना है कि जनप्रतिनिधियों व विभागीय अधिकारियों की लचर कार्यप्रणाली के चलते यह क्षेत्र स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित है, जिससे यहाँ के गरीब और तंगहाल लोग निजी अस्पतालों व झोलाछाप चिकित्सको के शोषण का शिकार होकर अपने तन और धन को बर्बाद करने को मजबूर हैं।क्षेत्रीय लोगों नें उक्त समस्याओं की ओर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्रालय का ध्यान आकृष्ट कराया है।

Post a Comment

Previous Post Next Post