रामायण हमें जीना सीखाती है और भागवत हमें मरना सीखाती है- देवकी नंदन जी


पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में टोरंटो, कनाडा में शुरू हुई श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस में श्रीमद भागवत कथा में जीवन और मृत्यु का वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।

आज की कथा पूज्य महाराज श्री ने "ये जीवन है तेरे हवाले मुरलिया" भजन से की। इसके बाद महाराज श्री ने कहा की हमारे सनातन धर्म के मुताबिक ये नवरात्र हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। इन दिनों में किया हुआ कोई भी सत कर्म हम लोगों को अधिक फल देने वाला होता है। इसलिए हमें इन दिनों में ज्यादा से ज्यादा अच्छे काम करने चाहिए। इन दिनों में देवी बहुत ही जल्दी से प्रसन्न हो जाती है।

कल आपने श्रीमद भागवत कथा में सुना की किस तरह से राजा परीक्षित को श्राप लगा और राजा परीक्षित ने उसी समय में घर को त्याग दिया था। उनको श्राप यह मिला था की सातवें दिन आपको तक्षक नाग डस लेगा। जैसा की आप सब जानते है की यह श्राप हम सब को भी लगा हुआ है। श्री शुकदेव महाराज जी बहुत प्रसन्न हुए जब राजा ने उनसे प्रश्न किया था कि जिसकी मृत्यु सातवें दिन हो उसे क्या करना चाहिए?

महाराज श्री ने हमें बताया की जो भी प्राणी इस धरती पर आया है उसकी मृत्यु तो एक न एक दिन जरूर ही होगी। जो भी इस धरती पर आया है वो एक दिन जायेगा जरूर। जब भी हम इस धरती को छोड़कर वहां पर जायेंगे तो हमसे सबसे पहले पूछा जायेगा कि तुम्हारे पेपर कैसे है। तुमने नीचे धरती पर जाकर क्या किया था। यक्ष ने धर्मराज से प्रश्न किया कि इस संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या  है। तब धर्मराज ने कहा कि सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि लोग अपने ही लोगों को शमशान में जाकर के जलाते है और स्वयं ऐसे जिन्दा रहते है कि जैसे वो कभी मरेंगे ही नहीं।

लेकिन हम सब इस बात को जान कर भी इस बात से अनजान बने रहते है। यही तो मुर्ख व्यक्ति की पहचान होती है। राजा ने प्रश्न किया की जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन हो तो वो व्यक्ति क्या करे? तो शुकदेव महाराज जी ने कहा की तुमने यह प्रश्न अपने नहीं अपितु जगत के कल्याण के लिए मुझसे किया है। तुम तो जनकल्याण के पात्र हो। तुम भगवान की कृपा के पात्र हो। तब शुकदेव जी  महाराज ने कहा कि हे राजन जिसकी मृत्यु सातवें दिन है उस व्यक्ति को श्रीमद भागवत कथा सुननी चाहिए।

रामायण हमें जीना सीखाती है और भागवत हमें मरना सीखाती है। हम जिन भी चीजों के ऊपर बैठे है ,हमने जिन भी चीजों के ऊपर अपना सारा जीवन लगाया है। हमारे सनातन धर्म में स्त्री को शमशान में जाने की अनुमति नहीं होती है। हमारा ये शरीर भी केवल चिता तक ही हमारा साथ देता है। जिस शरीर को हम सब कुछ समझते है वो शरीर भी हमारा साथ नहीं देता है और जैसे ही चिता पर हमारा शरीर जलाया जाता है तो सभी हमारा साथ छोड़ देते है।

उसके बाद केवल उस पवित्र आत्मा के द्वारा किये हुए अच्छे काम ही उस व्यक्ति के साथ जाते है। नहीं तो उस व्यक्ति को अकेला ही चलना पड़ता है। आप के द्वारा किये हुए सत कर्म ही आपके साथ है। वही आपका साथ निभाने वाले होते है। उसके अलावा कोई भी आपका साथ देने वाला नहीं है चाहे आप गौरे है या काले है। धनवान हो या निर्धन, मोटे हो या काले, परिवार बहुत बड़ा हो या बहुत ही छोटा इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है। तुमको तो अकेले ही जाना पड़ेगा। तुम्हारे द्वारा किये हुए सत कर्म ही तुम्हारा साथ देंगे और कोई भी नहीं देगा।

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