आज की राजनीतिक ऊष्मा में अचानक नेता जी सुभाष पर जारी गोपनीय पत्रों ने क्रान्तकारियों के जीवनए उनकी पीड़ा उपेक्षा और षडयंत्र आदि चीजों ने उनके स्वतंत्रता आन्दोलन के साथ साहित्यिक अवदानों की तरफ मेरा ध्यान आकर्षित किया। राजनीति पर तो अक्सर लिखता रहा हूँ सो आज अपने पाठकों मित्रों से कुछ ऐसे साहित्यकारों के बारे में बात करूँगा जो साहित्य के साथ. साथ देश सेवा में भी पीछे नहीं रहे।
आज़ादी की लड़ाई में साहित्यकारों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है या यूँ कहें कि गुलामी के दिनों में अधिसंख्य साहित्यकार क्रांतिकारी पहले थे बाद में लेखक,पत्रकार आदि थे कवियों की रचनाओं में देश प्रेम की भावनाएं उफान पर थी कई कवियों और पत्रकारों को राष्ट्रवादी रचनाएँ व लेख लिखने के कारण जेल जाना पड़ा ऐसे अनेकोंनेक क्रांतिकारी साहित्यकार हैं.
जिनमें गणेश शंकर विद्यार्थी, राम प्रसाद बिस्मिल,माखनलाल चतुर्वेदी, दिनकर, गया प्रसाद शुक्ल स्नेही,श्रद्धा राम फिल्लौरी, भवानी प्रसाद मिश्र, यशपाल और शिवमंगल सिंह सुमन जी के कुछ प्रसंगों का मैं नीचे संक्षेप में जिक्र करने जा रहा हूँ ।वैसे उपरोक्त विभूतियों के आलावा भी अनेकानेक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी साहित्यकार हैं पर सबका वर्णन करना सम्भव नहीं है इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
गणेश शंकर विद्यर्थी
विद्यार्थी जी आज़ादी की लड़ाई व साहित्य को जोड़कर एक दुसरे का पूरक बनाने वाले महापुरुष थे। विद्यार्थी जी का जन्म 26 अक्तूबर १८९० में अतरसुइया स्थित इलाहबाद में हुआ था एवं १९३१ में बेहद कम उम्र में स्वर्गवास हो गया। इस अल्पायु में विद्यार्थी जी ने जो किया वह अप्रतिम है । उन्होंने कानपुर से 'प्रताप' नामक प्रथम राष्ट्रीय अखबार निकाला यहां से राष्ट्रवादी पत्रकारों और साहित्यकारों की एक नयी पौध तैयार हुई। यहीं पर चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राज गुरु ,सुख देव को एक नई दिशा मिली। इसी 'प्रताप' से प्रेम चन्द माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन ,गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' जैसे तमाम लोगो को साहित्य एवं पत्रकारिता का एक उम्दा समझ विकसित करने का मंच दिया। भगत सिंह के प्रेरणा श्रोत विद्यार्थी जी ही थे। विद्यार्थी जी एक उम्दा सम्पादक,पत्रकार होने के आलावा वे उच्च कोटि के लेखक भी थे। 5 बार अंग्रेजों के खिलाफ लिखने के कारण जेल भी गये । उन्होंने संस्मरण ,जेल डायरी ,निबंध ,पत्र और कहानी भी लिखी । गणेश शंकर विद्यार्थी रचनावली में उनकी रचनाएँ संकलित है, इनके नाम से भारत सरकार पत्रकारिता पुरस्कार भी प्रदान करती है.
राम प्रसाद बिस्मिल
राम प्रासाद बिस्मिल एक सच्चे राष्ट्र भक्त के अलावा वे एक उम्दा शायर एवं लेखक भी थे। उनकी एक रचना स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा थी। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में जन्में बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा भी जेल में रहते हुए लिखी, जो एक उम्दा आत्मकथा है । जिसका नाम 'निज जीवन की एक छटा है' सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है , देखना है जोर कितना बाजुएं कातिल में है। बिस्मिल जी की ही रचना है.
माखनलाल चतुर्वेदी
चतुर्वेदी का जन्म बावई गाँव जनपद होशंगाबाद मध्यप्रदेश में हुआ था। वे प्रखर राष्ट्रवादी थे, अपनी रचनाओं के माध्यम से जनता में स्वदेश प्रेम की भावना जागृत करते रहते थे। वे कर्मवीर नाम से एक राष्ट्रीय अख़बार भी चलाते थे, माखन जी का एक उपनाम 'एक भारतीय आत्मा' है।उनकी एक रचना देखिये "सूली का पथ ही सीखा हूँ, सुविधा सदा बचाता आया , मैं बलि पथ का अंगारा हूँ , जीवन ज्वाला जलाता आया शीर्षक 'अमर राष्ट्र' , दूसरी रचना देखिये।
चाह नहीं सुर बाला के गहनों में गुथा जाऊं,चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ ...................... मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक। मातृभूमि पर शीश चढानें ,जिस पथ जावें वीर अनेक.
भवानी प्रसाद मिश्र
मिश्र जी का जन्म भी होशंगाबाद जनपद में हुआ था माखनलाल चतुर्वेदी जी और मिश्र जी का अच्छा साथ रहा ।१९४२ से १९४५ तक स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने के कारण जेल में बंद रहे। मिश्र जी ने कुछ दिनों तक विद्यालय खोलकर पठन - पठान किया, जिसमें विद्द्यार्थियों को राष्ट्रवादी विचारों से अवगत कराया जाता था। मिश्र जी की एक रचना देखिये ...
बुरी बात है, उठो पांव रक्खो,रकाब पर, जंगल - जंगल ,नदी नाले , कूद्फांद्कर धरती रौदों, जैसे भांडों की रातों में बिजली कौधे, ऐसे कौंधो। शीर्षक 'उठो'।
गया प्रसाद शुक्ल सनेही
सनेही जी जन कवि थे, उनकी कविता पढ़ने की अनूठी शैली थी, जनता उनकी कविता सुनकर भाव विभोर हो उठती थी। उन्हें हिन्दी काव्य सम्मेलनों का प्रतिष्ठापक कहा जाता है। सनेही जी सच्चे राष्ट्रवादी थे। उनका जन्म हड्दागाँव जिला उन्नाव, उत्तरप्रदेश में हुआ था। वे स्कूल अध्यापक थे परन्तु १९२१ में त्यागपत्र देकर आज़ादी के आन्दोलन में कूद पड़े उनकी एक राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत रचना देखिये ....
जो भरा नहीं है भावों से
बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
श्रद्धाराम फिल्लौरी
पंडित श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरी एक वैदिक धर्म को मनाने वाले धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे।पर उतने ही बड़े राष्ट्र भक्त व लेखक भी थे । वे धार्मिक आयोजनों के बहाने लोगों को एकत्रित करते और राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाते, श्रद्धाराम फिल्लौर के रहने वाले थे। अंग्रेज सरकार ने उनपर फिल्लौर आने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था, उन्होंने ही हिन्दी का प्रथम उपन्यास 'भाग्यवती' लिखा। ॐ जय जगदीश हरे... आरती श्रद्धाराम जी की ही रचना है.
यशपाल
यशपाल जी का स्वतंत्रता आन्दोलन और साहित्य दोनों में अतुलनीय योगदान है प्रेमचंद के बाद हिन्दी साहित्य में यशपाल जैसा कहानीकार शायद ही कोई हो। ३दिसम्बर १९०३ को पंजाब के फिरोजपुर छावनी में पैदा हुए। यशपाल जी के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब वे लाहौर के नेशनल कालेज में पढने गये। वहीं इनका परिचय भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव से हुआ इसके बाद इन्होने सशस्त्र क्रांति में भाग लिया। दिल्ली और लाहौर षड्यंत्र मामले में अंग्रेज सरकार ने १९३२ में 14 साल की सजा सुनाई थी।१९७१ में इन्हें पद्मभूषण मिला.
शिवमंगल सिंह 'सुमन'
उन्नाव की ही वीरभूमि पर सुमन जी का जन्म 5 अगस्त १९१५ को हुआ। एक बार किसी कवि सम्मेलन से सुमन जी घर आ रहे थे , कि कुछ लोगों ने इन्हें अगवा कर आखों पर पट्टी बांधकर एक जगह ले गये। वहां आखों से पट्टी हटाई गयी तो सामने क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद थे। आज़ाद ने सुमन जी से कहा . क्या तुम मेरी रिवाल्वर दिल्ली पहुंचा सकते हो ? सुमन जी ने तुरंत हाँ कह दी, तो ऐसे थे सुमन जी। उनकी एक रचना देखिये 'माँ कब से खड़ी पुकार रही, पुत्रों निजकर में अस्त्र गहो,सेनापति की आवाज़ हुई ,तैयार रहो, तैयार रहो, आओ तुम भी दो आज विदा, अब क्या अड़चन ? क्या देरी ? लो आज बज उठी रणभेरी, पैतीस कोटि लड़के - बच्चे, जिसके बल पर ललकार रहे । वह पराधीन बिन निज गृह में, परदेशी की दुत्कार सहे। कह दो अब हमको सहन नहीं ,मेरी माँ कहलाये चेरी ,लो आज बज उठी रणभेरी।
शीर्षक 'रणभेरी'।
रामधारी सिंह
दिनकर जी का जन्म बिहार के बेगूसराय में १९०८ में हुआ दिनकर जी को राष्ट्रकवि कहा जाता है। उनकी रचनाएँ राष्ट्रप्रेम की भावनाओं की उद्दात लहरें हैं, उन्होंने देश व भाषा दोनों को खूब प्रेम किया, उन्होंने राष्ट्रसेवा के अलावा साहित्य की भी ख़ूब सेवा की। इन्होने हिन्दी पर राष्ट्रभाषा व राष्ट्रीय एकता तथा राष्ट्रभाषा आन्दोलन और गांधी जी जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी। संस्कृत के चार अध्याय गंभीर विशद व खोजपूर्ण ग्रन्थ है। उर्वशी के लिए दिनकर जी को १९७२ में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। इनकी एक रचना देखिये ...
दाता पुकार मेरी संदीप्ति को ज़िला दे
बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे।
प्यारे स्वदेश के हित अंगार माँगता हूँ,
चढ़ती जवानियों का शृंगार मांगता हूँ। शीर्षक - आग की भीख , एक अन्य रचना देखिये ...
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।
पवन तिवारी
(युवा कवि व लेखक)
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