अप्सराओंक्र हिंदू पौराणिक ग्रंथों में मिलता है, तो वहीं यूनानी ग्रंथों में इन्हीं अप्सराओं को ‘निफ’ नाम से संबोधित किया जाता रहा है। आधुनिक युग में वैदिक युग की अप्सराएं तो किसी ने नहीं देखीं। लेकिन उनके बारे में काफी कुछ हैरतंगेज जानकारी धर्म ग्रंथों में मिलती है।
नारी की देवी के रूप में पूजा:
वैदिक काल में जहां एक तरफ तो नारी को देवी के रूप में पूजा जाता था। तो उसी नारी को अप्सरा बनाकर शोषण, अत्याचार और उनके शील को बार-बार और अनेकों बार भंग किया गया। उर्वशी, मेनका, रंभा एवं तिलोत्तमा स्वर्ग की ऐसी ही कुछ अप्सराएं थीं। जिनका सौंदर्य अनुपम था।
अप्सरा का स्वर्ग में शोषण:
अप्सरा कुबेर-पुत्र के यहां जा रही थी तो रावण ने उन्हें रोक लिया। उनकी खूबसूरती देख रावण ने पहले तो उसे प्रसन्न करने के लिए कहा, लेकिन जब अप्सरा अपनी इच्छानुसार ना मानी तो रावण ने उसे गलत इरादे से स्पर्श किया था।
तिलोत्मा अप्सरा:
एक कहानी तिलोत्मा अप्सरा की थी। तिलोत्मा एक श्राप के कारण अप्सरा बनी थी। वह कश्यप और अरिष्टा की कन्या थी, जो पूर्वजन्म में ब्राह्मणी थी और जिसे दोपहर में स्नान करने के अपराध में अप्सरा होने का श्राप मिला था।
तिलोत्मा ने देवों पर आने वाली एक बड़ी समस्या हल किया था। तीनों लोको में सुंद और उपसुंद नामक राक्षसों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था इसलिए उनके संहार के लिए ब्रह्मा ने विश्व की उत्तम वस्तुओं से तिल-तिल सौंदर्य लेकर इस तिलोत्मा अप्सरा जैसी सुंदर कन्या रचना की।
तिलोत्मा इतनी सुंदर थी कि सुंद-उपसुंद दोनों ही दानव उसे पाने की चाह में आपस में लड़ बैठै और उन्होंने एक दूसरे का अंत कर दिया था।
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