एक दर्द की बात न पूछो


अगणित दर्द छिपाए बैठा एक दर्द की बात न पूछो  । 
दिन तो गिन-गिन कट जाते हैं किंतु रात की बात न पूछो  ।।
शब्द नहीं हैं कहने को इतनी पीर समाई मन में ,
पूछ रहा तुमसे ही बोलो किस ने आग लगाई तन में ।
जो प्रतिछण घायल कर जाती,उस चितवन की बात न पूछो । 
दिन तो गिन गिन कट जाते हैं किंतु रात .....
बंदनवार सजे आशा के,पर  मंदिर के द्वार बंद हैं,
संपुट वाचन में तेरी ही स्मृतियों के नवल छंद हैं ।।
पनघट पर भी प्यासा बैठा रीते  घट की बात न पूछो । 
अगणित दर्द छुपाए बैठा एक दर्द की बात न पूछो. 
दिन तो गिन-गिन कट जाते हैं किंतु रात....
पाती ही साथी बन आती  रूप तुम्हारा अंकित जिस में, 
आंखें सावन घन बन जाती बरसे बूंद प्रीति की जिसमें.
स्वाति बूंद का ही याचक जो उस चातक की बात न पूछो,
दिन तो  गिन गिन काट जाते हैं किंतु रात..
बैठा अपलक दृष्टि गड़ाए दीपक भी उस देहरी पर,
लगे महावर पांव पड़े थे सर्वप्रथम तेरे ही जिस पर. 
बदला लिया समय ने ऐसे,अब उसकी तुम घात न पूछो,
दिन तो गिन-गिन कट जाते हैं किंतु रात की बात न पूछो,
अगणित दर्द छुपाए बैठा एक दर्द की बात न पूछो


डा० भगवान प्रसाद उपाध्याय
वरिष्ठ पत्रकार/कवि/साहित्यकार एवं लेखक
गधियांव,करछना इलाहाबाद

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